________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तैलपकरणम् पञ्चमो भागः
२५९ (७९८१) सहचरतलम् (१) सहारे चलना और अस्थिभग्नादि रोगोंको नष्ट ( ग. नि. । तैला. २)
करता है।
(७९८२) सहचरतैलम् (२) समूलपत्रशाखस्य शतं सह वरस्य च ॥ क्षोदयित्वा जलद्रोणे कार्य पादावशेषितम् ।।
| ( भै. र. । मुखरोगा. ; व. से. ; र. र.; वृ. नि. शतपुष्पा देवदारु मांसी शैलेयकं वचा ॥
र.; वृ. मा. ; यो. र.। मुखरोगा. ; चन्दनं तगरं कुष्ठमेला चांशुमती तथा ।
वृ. यो. त.। त. १२८) एतैः कर्षसमै गैस्तैलपस्थं विषाचयेत् ॥
तुलां धृतां नीलसहाचरस्य पयस्तदद्विगुणं दत्त्वा पलान्यष्टौ च शर्करा।
द्रोणेऽम्भसः संश्रपयेद्यथावत् । अथ तैलस्य पकस्य शृणु वीर्यमतः परम् ॥
पूते चतुर्भागरसे तु तैलं ये च कोष्ठगता वाताये च वाताः शिरोगताः ।
पचेच्छनैरईपलपमाणः ।। अस्थिमज्जगताश्चैव कर्णमध्यगताश्च ये॥
कल्कैरनन्ताखदिरारिमेदमृकानां मिन्मिणानांच पीठकटयूरुसर्पिणाम् ।
जाम्ब्वाम्रयष्टीमधुकोत्पलानाम् । स्वभावेन च ये भग्ना अस्थिभनाश्च ये नराः ॥
ततैलमाश्वेव धृतं मुखेन तेषां च संपयोक्तव्यं हितमेतदनूपमम् ।
___स्थैर्य द्विजानां विदधाति सबः ॥
६। सेर काली कटसरैयाको कूट कर ३२ क्वाथ-मूल, पत्र और शाखायुक्त ६। सेर |
सेर पानीमें पकावें और ८ सेर शेष रहने पर छान कटसरैयाको कूट कर ३२ सेर पानीमें पका और
लें तदनन्तर उसमें २ सेर तेल और निम्न लिखित ८ सेर रहने पर छान लें।
कल्क मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी कल्क--सोया, देवदारु, जटामांसी, भूरि- जल जाय तो तेलको छान लें। छरीला, बच, सफेद चन्दन, तगर, कूठ, इलायची कल्क--अनन्तमूल, खैरसार, अरिमेद और शालपर्णी; इनका चूर्ण ११-१। तोला । खांड | (दुर्गन्धित खैर), जामनकी छाल, मुलैठी और ४० तोले ।
नीलोत्पल; इनका चूर्ण २॥-२॥ तोले । २ सेर तेलमें उपरोक्त काथ, कल्क और ४ इस तेलको मुखमें धारण करनेसे दांत शीघ्र सेर दूध मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी ही दृढ़ हो जाते हैं । जल जाए तो तेलको छान लें।
(७९८३) सहचरतैलम् (३) (वृहद्) यह तेल कोष्ठगत वायु, शिरोगत वायु, अस्थि (ग. नि. । परि. तैला. २) और मजागत वायु तथा कर्णगत वायु, मूकता क्वाथे साहचरे शतावरियुते क्षुद्रामृतैरण्डजे ( गूंगापन ), मिन्मिनाना, पीठ, कमर और उरुके श्योनाकारणिबिल्वगोक्षुरयुते
For Private And Personal Use Only