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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेलप्रकरणम् ] पश्चमो भागः २५७ निसोत ५ तोले, आमला २० तोले और पानी २ | स्वल्पधात्रीपृतम् सेर ले कर सबको एकत्र मिला कर मन्दाग्नि पर (भै. र. । बहुमूत्रा.) पकावें और जब जलांश शुष्क हो जाय तो घीको छान लें। प्र. सं. ३२९१ " धात्रीधृतम् (स्वल्प)" मात्रा-११ तोला । देखिये। इसके सेवनसे उदर रोग, प्लीहा, गुल्म, स्वल्पनीलीघृतम् कच्छपरोग आदिका नाश होता है। यह उपद्रवयुक्त वातज गुल्मको इस प्रकार (वृ. यो. त. । त. १२०) नष्ट कर देता है, जिस प्रकार वायु मेघोंको । प्र. सं. ३४९४ " नीलीवृतम् ” देखिये । स्वल्पचैतसघृतम् स्वल्पपश्चगव्यं घृतम् (र. र. । उन्मादा.) प्र. सं. ४०४८ “पञ्चगव्यं घृतम् (स्वल्प)" प्र. सं. १७८३ “चैतसघृतम् ' देखिये ।। रे खये । इति सकारादिघृत (करणम् अथ सकारादितैलप्रकरणम् (७९७७) ससच्छदादितैलम् । कल्क-हल्दी, दारुहल्दी, हर्र, बहेड़ा, ( भै. र. । क्षुद्ररोगा.) आमला, सेांठ, मिर्च, पीपल, इन्द्रजौ, मजीठ, खैरसप्तच्छदस्य वासायाः पिचुमर्दस्य चाम्भसा । सार, जवाखार और सेंधा नमक; इनका समान भाग तैलप्रस्थं पचेत्कल्कैनिशादावीफलत्रिकैः ।। मिलित चूर्ण २० तोले । व्योपेन्द्रयवमनिष्ठा खदिरक्षारसैन्धवैः । २ सेर तेलमें उपरोक्त काथ और कल्क मिला गोमूत्रस्याढकं दत्त्वा शनैश्च मृदुनाग्निना ॥ कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश शुष्क हो पधिनीकण्टकं चिप्पं कदरं व्यङ्गनीलिके। जालगर्दभकश्चैतन्वग्गदांश्च विनाशयेत् ॥ | जाय तो तेलको छान लें। द्रवपदार्थ-सप्तपर्ण (सतौने) की छालका ___ यह तेल पद्मिनी कण्टक, चिप्प, कदर (ठेठ), काथ दो सेर । बासेका स्वरस दो सेर । नीमके । व्यङ्ग ( झाई ), नीलिका और जालगर्दभ आदि पत्तों या छालका रस २ सेर । गोमूत्र ८ सेर । । रोगोंको नष्ट करता है। 33 For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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