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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतमकरणम् । पञ्चमो भागः २५५ - २ सेर धीमें उपरोक्त कल्क और ८ सेर सिद्धः कषाये द्विपलांशिकानां दूध मिला कर पकावें । जब दूध जल जाय तो प्रस्थो घृतात्स्यात्मतिबद्धवाते ॥ घीको छान लें। शालपणी, पृष्ठपर्णी, कटेली, कटेला, गोखरु, ___यह घृत पांच प्रकारको खांसी और दारुण | पुनर्नवा, अमलतास और पूतिकरच (करञ्जवा) शोथको नष्ट करता है। |१०-१० तोले ले कर सबको एकत्र कुट कर ८ (७९७१) स्थिराद्यवृतम् (१) सेर पानीमें पकावें और २ सेर र.ने पर छान लें। (च. सं. । चि. अ. कासा.) तदनन्तर उसमें २ सेर घी मिलाकर पकावें और स्थिरासितापृश्निपर्णीश्रावणीबृहतीयुगैः । पानी जल जानेपर छान लें । जीवकर्षभकाकोलीतामलक्यद्धिजीरकैः॥ यह घृत आनाहको नष्ट करता है । शृतं पयः पिबेत्कासी ज्वरी दाही क्षतक्षयी । ( मात्रा-१ तोला ।) सज्ज वा साधयेत्सर्पिः सक्षीरक्षुरसं भिषक् ।। । (७९७३) स्थिराद्यघृतम् (३) शालपर्णी, मिश्री, पृष्टपर्णी, गोरखमुण्डी, छोटी और बड़ी कटेली, जीवक, ऋषभक, काकोली (व. से. । हृद्रोगा. ) भुई आमला, ऋद्धि और जीरा समान भाग मिलित स्थिरादिकल्कवत्सर्पिः क्षीरेणेक्षुरसेन वा । १० तोले । दूध २ सेर । पानी १६ सेर । सबको द्राक्षारसेन पक्वं वा पित्तरोगविनाशनम् ॥ एकत्र मिला कर पकावें । जब पानी जल जाय तो कल्क--शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, कटेली, कटेला दूधको छान लें। और गोखरु ८-८ तोले ले कर सबको बारीक ___ यह दूध उचित मात्रानुसार पीनेसे कास, पीस लें। ज्वर दाह और क्षतक्षय लाभ होता है। ४ सेर धीमें यह कल्क और १६ सेर दूध ___अथवा इस दूधका दही बनाकर घी निकालें । और फिर यह धी १० तोले । दूध १० तोले या १६ सेर ईखका रस अथवा १६ सेर द्राक्षा (अंगूर) का रस मिला कर पकावें । जब जलांश और ईखका रस ३० तोले ले कर सबको एकत्र शुष्क हो जाय तो घृतको छान लें। मिला कर पकावें । जब घृत मात्र शेष रह जाय | तो छान लें। यह घृत पित्तज हृद्रोगको नष्ट करता है। यह घी भी कासादि उक्त रोगोंमें हितकारी है। ( मात्रा--आधा तोला ।) (७९७२) स्थिराद्यवृतम् (२) (७९७४) स्नुक्क्षीरयोगः (व. से. । उदावर्ता. ; च. द. ; वृ. नि. र. : र. र. । आनाह.) (वै. म. र. । पटल ९) स्थिरादिवर्गस्य पुनर्नवायाः दुग्धे स्नुक्क्षीरपक्वे दधिजनिशम्पाकपूतीककरअयोश्च । । तमहोरात्रतस्तन्मथित्वा For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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