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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुटिकाप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः २२३ सूतादिगुटिका शूलं सङ्ग्रहणीगदं त्वतिमृतिं दुष्टां प्रवाहीजयेद् (यो. र.; र. च.) दीप्ताग्निं कुरुते बलं क्तिनुते गुल्ममणाशं तथा । रसप्रकरणमें देखिये। अशांस्युद्धतमारुतामयहरो बाले च वृद्ध हितो सूतादिवटी (१) गर्भिण्यां च न शस्यते न निपुणैनों रक्तपित्ते (र. च. । उपदंशा.) ऽपि च ॥ रसप्रकरणमें देखिये। सांठ, मिर्च, पीपल, चीतामूल, हर्र, बहेड़ा, सूतादिवटी (२) आमला, जीरा, हींग, अजवायन और अजमोद (र. रा. सु.; वृ. नि. र. । अतिसारा.) १-१ भाग एवं सूखा हुवा सूरण (जिमोकन्द) प्र. सं. १८९२ " चन्द्रप्रभावटी (३)" सबसे आधा लेकर चूर्ण बनावें और फिर उसमें देखिये। उससे (चूर्णसे) चतुर्थांश सेंधा नमकका चूर्ण मि. पाठान्तरके अनुसार लाकर सबको १ दिन जम्बीरी नींबूके रसमें घोट अभ्रकके स्थानपर ताम्र भस्म है। कर (३-३ माशेके) मोदक बनालें । ये मोदक शूल, संग्रहणी, अतिसार, दुष्ट सूतादिवटी (३) प्रवाहिका, गुल्म, अर्श और प्रबल वातव्याधिको (र. रा. सु.; वृ. नि. र. । ग्रहण्य.) नष्ट और अग्निको दीत करते हैं। ये बलवर्धक प्र. सं. ७०२३ "विजयवटी” देखिये । एवं वृद्धों तथा बालकां तकके लिये हितकारी हैं इसमें (सूतादिवटीमें) अभ्रकके स्थान पर तेजपात परन्तु गर्भिणी स्त्री और रक्तपित्त रोगीको न देने है तथा एक भाग जयपाल अधिक है। शेष चाहिये। प्रयोग विजयवटीके समान है। (७९०४) सूरणमोदकः (२) (वृहद्) सूतिकातनाशिनीवटी (भै. र.; वै. र.; वृ. मा.; यो. र. । अशो.; ग. नि. । गुटिका ४; र. चि. म. । स्त. ९; रसप्रकरणमें देखिये। च. द. | अशो. ५) (७९०३) सूरणमोदकः (१) मुरण षोडशभागा बहेरष्टौ महौषधस्यातः । (यो. र.; वृ. नि. र. । अशो.) अर्दैन भागयुक्तिमरिचस्य ततोऽपि चार्दैन । शुष्कात्सूरणकन्दतोऽर्धमिलितं व्योष तथा चित्रकं त्रिकला कणा समूला तालीशारुष्करक्रिमिश्रेष्ठाजीरकरामठं समलवं दीप्याजमोदान्वितम् । नानाम् । सर्वस्यारम्रिकसिन्धुजं परिभवेनिम्बुद्रवैर्वासरं भागा महौषधसमा दहनांशा तालमूली च ॥ सिद्धः सूरणमोदको गदहरः श्रेष्ठो भागः शूरणतुल्यो दातव्यो वृद्धदारकस्यापि । भषेत्माणिनाम् ॥ भृोले मरिचांशे सर्वाण्येकत्र सञ्चूर्ण्य ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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