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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णपकरणम् ] पञ्चमो भागः २०५ (७८४३) सिंहचूर्णम् (२) श्री सिंहन राजा-कृत. यह चूर्ण गुल्म, ( ग. नि. | चूर्णा. ३) अफारो, विचूंचिका, अर्श, श्वास और वायुको अधै हिडपलं पलं मुश्मिलं सौवर्चल व पले नष्ट करता है। प्रत्येकं मरिचाम्लदीप्यलवणाम्भोराशिजाता- (मात्रा-२ माशे।) अनुपान-तक्र । न क्षिपेत् । शुण्ठयाश्च त्रिपलं चतुष्पलमपि स्याहाडिमं (७८४५) सिंहराजचूर्णम् जीरकम् । (हा. सं. । स्था. ३ अ. ६ ; वृ. नि. र. । श्रीमत्सिंहणभूमिपालकथितं सेव्यं सदेदं बुधैः ।। ग्रहण्य.) हींग २॥ तोले, संचल ( काला नमक ) ५ एकः प्रदेयो रुचकस्य भागो तोले, तथा मिर्च, अम्लवेत, अजवायन और समुद्र ह्य|जमोदस्य च सैन्धवस्य । लवण १०-१० तोले एवं सेठ १५ तोले, अना शुण्ठयास्त्रयो द्वौ मरिचस्य भागौ रदाना २० तोले और जीरा २० तोले ले कर चूर्णं चतुर्थ सितजोरकस्य ॥ चर्ण बनावें । तक्रेण पानात्कफवातरोगां___ श्रीमान् सिंहणराज-कथित यह चूर्ण अग्नि स्तद्भोजनान्ते खलु दीपनाय। मांथको नष्ट करता है। श्रीसिंहराज्ञा कथितं तु चूर्ण ( मात्रा-२ माशे । अनुपान-गर्म पानी ) ___ प्लीहोदराजीर्णविसूचिकायाम् ॥ (७८४४) सिंहनपुरीचूर्णम् संचल (काला नमक) १ भाग, अजमोद (वृ. नि. र. । ग्रहण्य.) आधा भाग, सेंधा नमक आधा भाग, सेठ ३ भाग, एकांशो रुचकादुभौ मरिचतः काली मिर्च २ भाग तथा सफेद जीरा ४ भाग ले शुण्ठयास्त्रयो जीरतश्चत्वारोळ्युतः। कर चूर्ण बनावें । समुद्रलवणो भागस्तथा सैन्धवः इसे भोजनके अन्तमें तक्रके साथ पीना चूर्ण सिंहनभूभुजा हि कथितं ॥ चाहिये । तक्रेण संसेवितं गुल्मानाहविचिकागुदरुजः श्वासानिलान्नाशयेत्। श्री सिंहराज-कथित यह चूर्ण अग्निदीपक, तथा प्लीहा, उदर, अजीर्ण और विसूचिका काला नमक (संचल) १ भाग, मिर्च २ भाग नाशक है। सेठ ३ भाग, जीरा ४॥ भाग तथा समुद्र लवण और सेंधा नमक १-१ भाग ले कर चूर्ण बनावें। (मात्रा-२-३ माशे ।) . For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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