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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - भारत-भैषज्य रत्लांकरः [शकारादि (७१८१) शठ्यादिकाथः (५) एष शठ्यादिको वर्गः सभिषातज्वरापहः । (ग. नि. । ज्वरा. १; कृम्य. ६) कासहग्रहपातिश्वासे तन्द्रयां च षस्यते ॥ शव्याखुपर्गीकृमिहाविशाला कचूर, पोखरमूल, कटेली, काकड़ासिंगी, होनेरमेला सुरदारुशिः । धमासा, गिलोय, सेठि, पाठा, चिरायता और कुटकी किरातवासाकुटजोगगन्धा समान भाग ले कर काथ बनावें । निशादयं विक्तकरोहिणी च ॥ यह काथ सन्निपात, कास, इद्ग्रह, पार्श्वकषाय एषां कृमिजावरोग पोड़ा, स्वास और तन्द्राको नष्ट करता है । युक्तं त्रिदोष शमयेदुदीर्णम् ॥ (७१८४) शठ्यादिपाचनम् कचूर, मूषाकर्णी, बायबिडंग, इन्द्रायण, सुगन्धवाला, इलायची, देवदारु, सहजनेकी छाल, चिरा (हा. सं. । स्था. ३ अ. २) यता, वासा, कुड़की छाल, बच, हल्दी, दारुहल्दी सठी किरात कटुका विशाला और कुटकी समान भाग ले कर काथ बनावें। गुहूचिशृङ्गी बृहतीयं च । बहकाव कृमिरोग और ज्वरको नष्ट करता है। महौषधं पौष्करपन्वयास रास्ना मुराहं गजपिप्पली च ॥ (७१८२) शठ्यादिकायः (६) पीतं तु निःक्वाध्य हितं नराणां (यो. र. आमवाता. ; वृ. मा. । आमवा.; ग. सठधादिचातुर्दश्वकं प्रशस्तम् । नि. । आमवाता. २२, मा. प्र.। म. खं.२) हिनस्ति तन्द्राश्वसनं शिरोऽति भठी शुण्ठयमया जोमा देवाहातिविषाऽमृता। जाड्यं सर्लज्वरमाशु हन्ति ॥ कवायमामवातस्य पाचन रूसमोजिनाम् ॥ कचूर, चिरायता, कुटकी, इन्द्रायणकी जड़, कचूर, सोंठ, हर्र, बच, देवदारु, अतीस और गिलोय, काकड़ासीगी, छोटी और बड़ी कटेली, गिलोय समान माग ले कर काथ बना। सांठ, पोखरमूल, धमासा, रारना, देवदारु और गज इसे सेवन करने और रूक्षाहार करनेसे आम- | पीपल समान भाग ले कर काथ बनावें। वात रोगमें दोषोंका पाचन होता है। __इसके सेवनसे ज्वर नष्ट होता तथा तन्द्रा, (७१८३) शठ्यादिगणः । श्वास, शिरपोड़ा, जड़ता और शलादि ज्वरके उपद्रव शान्त होते हैं। .. (च. द. । ज्वरा. ; वृ. मा. । चरा. ; ग. नि.। वरा. १ ; व. से. । ज्वरा.) (७१८५) शतपुष्पादिकषायः शठी पुष्करमूलं च व्याघ्री शृद्धी दुरामा । (ग. नि. । ज्वरा. १) गुहची नागरं पाठग किरात कटुरोहिणी ॥ प्रतपुष्पा बचा कुष्ठं देवदारु हरेणुका । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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