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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मिश्रप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः १७१ (७७१२) शार्दूलकाभिकम् शालपर्णी, खरैटो, बेल और पृष्टपर्णी समान ( भै. र. । अग्निमांद्या.) भाग ले कर इनके पानीसे पेया बना कर उसमें पिप्पली शृङ्गवेरश्च देवदारु सचित्रकम् । । अनारका रस मिला कर खिलाना कफपित्तातिचविकां बिल्वपेशीश्च अजमोदां हरीतकीम् ॥ | सारमें उपयोगी है। महौषधं यमानीश्च धान्यकं मरिचं तथा । (७७१४) शालिपादियोगः जीरकश्चापि हिजुश्च कालिकं साधयेद् भिषक। (वृ. मा. । अतिसारा. ; हा. सं.। स्था. एष शार्दूलको नाम कालिकोऽग्निबलपदः ।। ३ अ. ३) सिद्धार्थतेलसम्भृष्टो दशरोगान् व्यपोहति ॥ शालिपर्णी पृश्निपर्णी बृहती कण्टकारिका । कासं श्वासमतीसारं पाण्डुरोगं सकामलम् | | बलाश्वदंष्ट्राबिल्वानि पाठा नागरधान्यकम् ॥ आमं च गुह्यरोगश्च वातशूलं सवेदनम् ॥ | एतदाहारसंयोगे हितं सर्वातिसारिणाम् ॥ अर्शीसि श्वयथुश्चैव भुक्ते पीतं च सात्म्यतः । शालपर्णी, पृष्टपर्णी, बड़ी कटेली, छोटी क्षीरपाफविधानेन काञ्जिकस्यापि साधनम् ॥ कटेली, खरैटी, गोखरु, बेल, पाठा, सांठ भौर ____ पिप्पली, सांठ, देवदारु, चित्रक, चन्य; धनिया। बिल्वमज्जा, अजमोदा, हरड़, सेठ, अजवाइन, इनके पानीसे आहार (पेया, यूष आदि) सिद्ध धनिया, काली मिर्च, जीरा तथा हींग प्रत्येकका चूर्ण सम भाग । सम्पूर्ण चूर्णसे ८ गुनी काली, | (७७१५) शाल्मलीपुष्पयोगः काजीसे चौगुना जल । इन सबको एकत्र पाक (वृ. यो. त. । १०५ त. ; यो. र. । प्लीहा.) करें । जब जल उड़ जाय और काजीमात्र शेष मुस्विन्नं शाल्मलीपुष्पं निशापर्युषितं नरः। रहे तब उतार लें। यह शार्दूलकाजिक अग्नि | राजिकाचूर्णसंयुक्तमद्यात्प्लीहोपशान्तये ॥ तथा बलको बढ़ाता है । इसे श्वेत सरसेकि तेलमें संभलके फूलोंको शममके वक्त सिजा कर छौंक करके यथायोग्य मात्रामें सेवन करावें । ( स्विन्न करके ) रख दें और प्रातः काल उसमें इसके सेवनसे कास, श्वास, अतीसार, पाण्डु, का- | राईका चूर्ण मिलाकर खावें। मला, आमदोष, गुह्यरोग, वातशूल, अर्श तथा इसके सेवनसे प्लीहा वृद्धिका नाश होता है । श्वयथु आदि रोग नष्ट होते हैं। काजीका पाक (७७१६) शिग्रुपत्ररसाइच्योतनम् मी क्षीरपाकके समान ही होता है । (रा. मा.। नेत्ररोगा.) (७७१३) शालिपादिपेया । क्षौद्रान्वितः शिग्रुदलोद्भवो वा (प. से. । अतिसारा.) रसोऽक्षिण दत्तोऽनिरुजं क्षिणोति । चालिपी बला बिल्वैः पृथकपर्णी च साधिता। सइंजनेके पत्तोंके रसमें शहद मिला कर दारिमाम्लयुता पेया श्लेष्मपिसातिसारिणाम ॥ | आंखमें डालनेसे नेत्रपीड़ा शान्त होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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