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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [शकारादि (७६४०) शीतारिरसः (३) शुद्ध हरताल ८ तोले, शुद्ध हिंगुलोत्थ (वै. जी. । वि. ५) पारद ४ तोले, शुद्र गंधक २ तोले और शुद्ध मनसिल १ तोला लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली शुल्वं टङ्कणगन्धको च गरलं तुत्थं रसं खरं बनावें और फिर उसमें अन्य औषधे मिलाकर तालं तुल्यमिदं विमर्थ घटिकामानं सुषव्यारसैः। करेलेके रसमें घोटें। तदनन्तर १५ तोले शुद्ध सूतः स्यात्रिपुराारणा विराचतः शातारत्य ताम्रकी कटोरीके भीतर इस कल्कका लेप करदें स्मृतो और उसे एक हांडीमें उलटा करके रखदें तथा अजाजी शकरया युतः प्रशमयेदेकाहिकादि उसके ( कटोरीके ) ऊपर मिट्टीका प्याला ढककर ज्वरम् ॥ दोनोंकी सन्धिको गुड़ चूने आदिसे बन्द कर दें ताम्र भस्म, सुहागेकी खील, शुद्ध गन्धक, | और हाण्डीके शेष भागको बालसे भर कर उसे शुद्ध बछनाग, शुद्ध तूतिया, शुद्ध पारद, खपरिया चूल्हे पर चढ़ाकर नीचे १ दिन तीब्राग्नि जलावें । और शुद्ध हरताल समान भाग लेकर प्रथम पारे । तत्पश्चात् उसके स्वांगशीतल होने पर औषधयुक्त गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ताम्रकी कटोरीको निकाल कर पीस लें। औषधे मिलाकर करेलेके रसमें घोटकर (१-१ रत्तीको ) गोलियां बना लें। मात्रा-आधी रत्ती। ___ इसे जीरके चूर्ण और खांडके साथ सेवन इसमें काली मिचौंका चूर्ण मिलाकर पानमें रखकर खानेसे दाहपूर्व और शीतपूर्व समस्त विषम करनेसे एकाहिक आदि ज्वर नष्ट होते हैं। ज्वर नष्ट होते हैं। " (७६४१) शीतारिरसः (४) पथ्य-शाली चावलोंका भात और दूध । (मा. प्र. म. खं. २; भै. र. ; र. चं. ; रसे. सा. सं. (७६४२) शीतारिरसः (५) (स्पर्शवातारिरसः) र. का. धे. । चरा.) (२. चं. । वातरोगा. ; र. प्र. सु. । अ. ८; तालकं दरदोजूतः पारदो गन्धकः शिला । र. र. स.। उ. अ. २१, र. रा. सु.; क्रमाद्भागार्द्धरहितं कारवेल्ल्यम्बुमर्दितम् ॥ वृ. नि. र. ; धन्व. ; रस. सा. सं. । इदमस्य प्रमाणेन ताम्रपत्रीं प्रलेपयेत् । अधोमुखी दृढे भाण्डे तां निरुध्याथ पूरयेत् ॥ वातव्या.) चुल्ल्यां वालुकया घसमेकं प्रज्वाळयेद् दृढम् ।। रसेन गन्ध द्विगुणं प्रगृह्य शीते सये गुञ्जानॊ नागवल्लीदले स्थितः ॥ पुनर्नवामिस्वरसैविभाव्य । भक्षितो मरिचैः साढ़े समस्तान् विषमज्वरान् । पक्वार्कपत्रस्य रसेन पश्चादाहशीतादिकं हन्यात् पथ्यं शाल्योदनं पयः ॥ द्विपाचयेदष्टगुणेन यत्नात् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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