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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः १३४ (३) २ भाग नं. १ की औषधमें १ भाग नं. २ की औषध मिला कर अच्छी तरह खरल करें और फिर उसे पंचकोल (पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सांठ) के काथकी सात भावना, तथा अलुके काथकी दस भावना दे कर आधा आधा निष्क (२ ॥ -२ ॥ माशे) की गोलियां बना लें I ( व्यवहारिक मात्रा - २ - ३ रत्ती । ) अनुपान - सांठ और नागरमोथेका काथ । इसके सेवन से भयंकर ग्रहणी, अतिसार, आध्मान, अरुचि, वायु, अग्निमांध, और हिचकीका नाश होता है । मलत्याग करनेके पश्चात् भी दस्तक हाजत बनी रहती हो तो उसके लिये यह रस उपयोगी है । (७६२४) शीतकेसरी रसः ( भा. प्र. म. खं. २; र. रा. सु. । ज्वरा. ) पारदं गन्धकञ्चैव तुत्थञ्च दरदं विषम् । विषादष्टगुणं योज्यं मरिचं विश्वभेषजम् ॥ अश्वगन्धाथ विजया कासमर्दः कठिल्लकः । चतुर्णाश्च रसैरेतैश्चूर्णान्येतानि मर्दयेत् ॥ तुलस्यास्तु दलैः सार्धं भक्षितो रक्तिकामितः। हन्ति शीतज्वरं घोरं नाम्नायं शीतकेसरी | शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध तूतिया, शुद्ध हिंगुल और शुद्ध बचनाग १ - १ भाग तथा मिर्च और सोंठका चूर्ण ८-८ भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिला कर असगन्ध, भांग, कसौंदी और करेले के रसकी १-१ भावना दे कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें । [ शकारादि इसे तुलसी दलके साथ सेवन करनेसे घोर शीतज्वर नष्ट होता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६२५) शीतज्वरहररसः ( रसे. सा. सं. ; र. चं. । ज्वरा. ) सूतमाक्षिकगन्धानां भागश्चारुष्करस्य च । तथाष्टौ तालकाच्चूर्णाद्रविदुग्धस्य पोडश || स्नुही क्षीरस्य चैवाष्टौ स मृद्रग्निना पचेत् । स्वाङ्गशीतं समुद्धृत्य ततः खल्ले विमर्दयेत् ॥ शीतज्वरहरी नाम्ना रसोयं परिकीर्तितः ॥ शुद्ध पारद, स्वर्णमाक्षिक भस्म, शुद्ध गन्धक और शुद्ध भिलावा १-१ भाग तथा शुद्ध हरताल ८ भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधें मिला कर खरल करें । तदनन्तर उसमें १६ भाग आकका दूध और ८ भाग थूहर (सेहुंड) का दूध मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें और गाढ़ा होने पर ठंडा करके खरल में घोट कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें । इनके सेवन से शीतज्वर नष्ट होता है । शीतज्वराङ्कुशो रसः प्र. सं. ५५८० महाशीतज्वराङ्कुशो रसः देखिये । शीतज्वरारिरसः (१) (शीतारिरसः) ; (शा. सं. । खं. २ अ. १२ ; र. का. घे. र. रा. सु. । ज्वरा. प्र. सं. २५५७ " तरुणज्वरारिरसः (१) " देखिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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