SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org त-भैषज्य रत्नाकरः १२४ शिलाजीत, बायबिडंग, लोह भस्म, हर्र, पारद भस्म ( या रस सिन्दूर ) और स्वर्ण माक्षिक भस्म समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । भारत इसे शहद और घी में मिला कर सेवन करने से १५ दिनमें ही दुर्बल देह और क्षीणधातु व्यक्तिका शरीर पुष्ट हो जाता है । (७५९९) शिलाजतुयोगः (८) ( च. सं. । चि. स्था. ६ अ. ५ ) पञ्चमूलकषायेण सक्षीरेण शिलाजतु । पिवेत्तस्य प्रयोगेग बातगुल्मात् प्रमुच्यते ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ शकारादि पञ्चमूल के क्वाथ और दूध के साथ शिलाजीत सेवन करने से वातज गुल्म नष्ट होता है । (७६००) शिलाजतुयोगः ( ९ ) ( यो. र. । अश्मर्या; वृ. नि. र. 1 अश्मर्य. ) अश्मय चाश्मरी कृच्छ्रे शिलाजतु समाक्षिकम् । यवक्षारं गोक्षुरं च खादेद्वा चाश्मरीहरम् || ( ७५९७) शिलाजतुयोगः (६) ( वृ. मा. । वातरक्ता. ) युक्पञ्चमूलपयसा लघुपञ्चमूल्या क्वाथेन वाऽमृतलता क्वथनेन वाऽपि । वाटचालकस्य सलिलेन युतं मृतेन पीतं शिलाजतु समीरणशोणितघ्नम् ॥ दशमूलसे सिद्ध दूध के साथ या लघु पंचमूलके काथके साथ अथवा गिलोय या पीले फूलको खरैटीके काथके साथ शिलाजीत सेवन करने से वातरक्त नष्ट होता है । (७५९८) शिलाजतुयोगः (७) ( यो. र.; वृ. नि. र. । मूत्रकृच्छ्रा.; वृ. यो. त. । त. १०१ ) सशर्करं च ससिर्त लीढं सिद्धं शिलाजतु । निहन्ति मूत्रजठरं मूत्रातीतं च देहिनः ॥ एकत्र मिला कर सेवन करनेसे मूत्रजटर और मूत्राका नाश होता है । खांड, चांदी भस्म और शुद्ध शिलाजीत | पटोलत्रिफलातिक्तागवाक्षिक्वाथसंयुतम् । शिलाजतुं प्रयुञ्जीत जीर्णे क्षीरौदनाशनः ॥ शहद के साथ शिलाजीत सेवन करने या यवक्षार और गोखरुका चूर्ण सेवन करनेसे अश्मरी और उससे होनेवाला मूत्रकृच्छ्र नष्ट होता है । (७६०१) शिलाजतुयोगः (१०) ( यो. र. ; वृ. मा. ; व. से. ; वृ. नि. र. । उरुस्तम्भा. ; धन्व. ; रसे. सा. सं. ) शिलाजतुं गुग्गुलुं वा पिप्पलीमथ नागरम् । ऊरुस्तम्मे पिवेन्मूत्रैर्दशमूलीरसेन वा ॥ शुद्ध शिलाजीत या गूगल अथवा पीपल या सेठ गोमूत्र के साथ या दशमूलके काथके साथ सेवन करनेसे ऊरुस्तम्भ नष्ट होता है । (७६०२) शिलाजतुयोगः (११) (ग. नि. । उदरा. ३२ ) पटोल, त्रिफला, कुटकी और इन्द्रायणकी जड़ के काथ साथ शिलाजीत सेवन करने से पित्तोदर नष्ट होता है । पथ्य -- औषध पचनेके पश्चात् दूध भात खाना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy