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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषरोग] चतुर्थों भागः ७०८२ विषवज्रपातोरसः भयंकरसे भयंकर विष ५६९६ महा गन्ध हस्ती- विषनाशक विचित्रयोग नामागदः मिश्र-प्रकरणम् ५७१६ मृत्सञ्जीवनोऽगदः , , " " ५६८४ मञ्जिष्ठाद्योऽगदः विष ५६९५ महाऽगदः सर्पादिका भयंकर विष ६४४६ लजालुमूलयोगः सर्प विषका प्रभाव (अत्यन्त प्रभावशाली) नहीं होने देत' (५०) विसर्प. कषाय-प्रकरणम् ष्ठको अत्यन्त शीघ्र नष्ट ४९८८ मदनकफलादि विसर्पनाशक (वामक) करता है। योगः ६८१५ विसर्प हर तैलम् विसर्पादि ५०६५ मुस्तादि क्वाथः हर प्रकारका विसर्प ६१९४ लघुपंच मूलादि- पित्त विसर्प लेप-प्रकरणम् काथः ५३७१ मसूरादि लेपः विसर्प चूर्ण-प्रकरणम् ५३८७ मांस्यादि ,, अग्नि विसर्प ५९११ रामठादि योगः विसर्प ५३८९ , , विसर्प ५४२४ मृणालादि , पित्तज विसर्प अवलेह-प्रकरणम् ५९९८ रास्नादि , वातज ,, ५१८७ मञ्जिष्ठा भयायोगः विसर्प, रक्तविकार, खाज - तेल-प्रकरणम् रस-प्रकरणम् ६८१४ विसर्प नाशन विसर्प और श्वेत कु- ७०८८ विसर्पजिरसः विसर्प (५१) वृद्धयधिकारः कपाय-प्रकरणम् चूर्ण-प्रकरणम् ५८६८ रास्नादि काथः अन्त्रवृद्धि ५१४० मुण्ड्यादि चूर्णम् अन्त्र वृद्धि ५८६९ ,, , वृद्धि रोग ६६२९ विशालादि योगः १ सप्ताहमें अन्त्र वृ. ६४९५ वरुणादि , वातज अन्त्र वृद्धि द्धिको नष्ट कर देती है। ૧૧૨ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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