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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मूर्छा (४०) मूर्छाधिकारः कषाय-प्रकरणम् ५०१६ महौषधादिक्काथः मद, मूर्छा अवलेहप्रकरणम् ५२०५ मृणालाधवलेहः मूर्छा रस-प्रकरणम् | ५६२४ मूछन्तक रसः मूर्छा ५६२५ मूहिर , मूर्छा, दाह । ६०८३ रस योगः मूळ (४१) मूत्रकृच्छू मूत्राघाताधिकारः कषाय-प्रकरणम् __ चूर्ण-प्रकरणम् ५००३ मन्थादि योगः अभिघातज मूत्रकृच्छू ५१४४ मुष्टि योगौ मूत्राघात, अश्मरी (सरल योग) ५७४७ यवक्षार योगः मूत्रकृच्छ, अश्मरी ५०८२ मूत्रविरेचनीयो मूत्र रेचक ५७४८ , , , , द. म. क. ५७४९ , , समस्त प्रकारके मूत्रकृच्छ्र ५७२३ यवादि काथः मूत्र कृच्छ, गुल्म (सरल योग) ५७३७ यष्ट्यादि क्वाथः , , दाह, तृषा, मूत्रावरोध अवलेह-प्रकरणम् ५७४१ यूथीमूल योगः रक्तनाव, उष्णवान, । ७११६ वृहद् गोक्षुराद्यव- मूत्रकृच्छ्, मूत्राघात, मूत्रकृच्छ, शूल युक्त अश्मरि ___ मूत्राघात, शर्करा, अश्मरि ५८११ रक्तनारिकेल- मूत्रकृच्छ जलयोगः घृत-प्रकरणम् ६१९३ लघुपंचमूलयोगः ज्वरगत मूत्रकृच्छ ६७४९ विदारी घृतम् पैत्तिक मूत्राघात, छर्दि ६५६० वृहद्वरुणादिकाथः मूत्रकृच्छ, बस्ति तथा ___ मूत्रनलीकी पीड़ा ६५४५ वीरतर्वादिकाथः मूत्रकृष्ट मूत्राघात, वायु रस-प्रकरणम् ६५५७ वृहद्धात्र्यादि ,, ,, दाह, पीड़ा ५६१९ मूत्रकृच्छ्र हरः पित्तज मूत्रकृच्छको १ सप्ताहमें नष्ट करता है। शर्करा For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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