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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्वर] चतुर्थों भागः ७०५३ विनोदविद्याधर- नवज्वर, शूल, अजीर्ण | ७१०५ वृहज्ज्वरचूड़ा- समस्त ज्वर कोष्ठ बद्धता मणि रसः ।। ७०५६ विमलरसायनम् ज्वर, शोथ, अरुचि, ७१०६ वृहज्ज्वरान्तको- शुक्र धातुगत जीर्ण ___ शूल, वायु, पित्त । रसः ज्वर, बल्य ७०६१ विश्वतापहरण नवीन ज्वर ७१०८ वृहत्कस्तूरीभैरव विशेषतः लौट लौटकर रसः आने वाले ज्वर ७०६२ विश्वमूत्ति रसः सन्निपात ७११८ वेतालरसः सन्निपातमें अत्युपयोगी ७०७३ विषमज्वरान्तक विषम ज्वर, प्लीहा, मिश्र-प्रकरणम् अग्निमांद्य ५६९२ मधुसर्पिरादि विषम ज्वर, क्षतज ७०७४ , , ,, ज्वर, प्लीहा, यकृत, योगः कास, हृद्रोग __ (पुटपक्क) शोथ, आम, अरुचि, ५७१२ मूलिकाबन्धनम् शिर पर बांधनेसे ज्वर कासादि उतरता है ७०७५ विषमज्वरान्तक विशेषतः विषम ज्वर ५७१७ मेघनादमूल , " लौहम् (बृह.) " " " | ५८४९ यवादि योगः ज्वरकी दाह । ७०७६ विषमज्वरारिरसः विषम ज्वर ६४५० लाज मण्डः ज्वर, पिपासा, कफ, ७०९१ वीरभद्रभैरव ,, ज्वर, शूल पित्त ७०९२ वीरभद्राख्यो ,, सन्निपात ७१३२ वैद्यनाथ वटी नवीन ज्वर ७०९४ वीरविक्रमो , विषमज्वर, सन्निपात ७१५८ बालुका स्वेदः अङ्गमर्द, शिरपीड़ा,शूल ७१०३ वृहच्चिन्तामणि समस्त ज्वर, कास, ७१६५ विदार्यादियोगः चातुर्थिक ज्वर, कास, रसः प्लीहा, शोथ वायु, कफ - *(२५) ज्वरातिसाराधिकारः - काय-प्रकरणम् ६४८५ वत्सादन्यादि ज्वरातिसारको अत्यन्त ६४७९ वत्सकादिक्काथः ज्वरातिसार, विशेषतः शीघ्र नष्ट करता है। दाह । ६५५४ वृहत्पञ्चमूल्यादि रक्त सहित या रक्त६४८१ क्वाथः " " रहित अनेक योगोंसे " For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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