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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृमिरोग] चतुर्थों भागः ८४५ लेप-प्रकरणम् ५९८८ रसादि लेपः जू (यूका) चूर्ण-प्रकरणम् ६५८३ वचादि चूर्णम् उदरकृमि मरकर निकल जाते हैं। ६६१० विडङ्गादिचूर्णम् कृमिरोग ६६१६ " " "" - - धूप-प्रकरणम् ५४२९ मशकहर धूपः डांस, खटमल, मच्छर, गुटिका-प्रकरणम् रस-प्रकरणम् ६२५३ लाक्षादि वटी डांस, मच्छर आदि | ५६१८ मुस्ताचं चूर्णम् कृमि कीटनाशक ७०३० विडङ्गलौहम् उदरकृमि, अरुचि, __ अग्निमांद्य, ज्वर, शोथ तैल-प्रकरणम् ६७९३ विडङ्ग तैलम् यूका, लिक्षा मिश्र-प्रकरणम्. ६७९७ विडङ्गाचं तैलम् शिरोगत कृमि । ७१६३ विडङ्गादि योगः कृमिनाशक, अग्नि दीपक - *(१८) क्षय राजयक्ष्माधिकारः कषाय-प्रकरणम् ५७७१ यष्ट्यादि चूर्णम् राजयक्ष्माजनित कृशता ६२०६ लाक्षाकूष्माण्ड रक्तक्षय ५९१६ रास्नाद्यं ,, राजयक्ष्मा, श्वोस, कास कल्कः ६२२१ लवङ्गाय , क्षय, अरुचि, उरोग्रह, गलग्रह, हिक्का, अतिचूर्ण-प्रकरणम् सार, कास आदि. ५१२१ महातालीसादि क्षय, पीनस, ज्वर, - ६२२७ , , क्षय, अरुचि, कास चूर्णम् स्वरभंगादि (मुखशोधक) ५७५५ यवादि चूर्णम् क्षय ६६६० व्योषादि , क्षयको नष्ट कर शरीरको अति शीघ्र हृष्ट अवलेह-प्रकरणम् पुष्ट और बलवान बना ५१९० मधुपक हरीतकी क्षय, कास, वमन, तृषा देता है। हिचकी आदि For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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