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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य रत्नाकरः [वकारादि (७१६२) विजयाशुद्धिः । आधा आधा माशा तथा शहद २ तोले ले कर (वै. र. । वाजीकरणा.) सबको एकत्र मिला कर पीनेसे त्रिदोषज शूल तुरन्त त्रिप्रक्षालितमोहिनीदलरजः संशोषितं खर्परे नष्ट हो जाता है। सम्यक् तं मृदुभर्जितं दृढपटे सञ्चूर्ण्य सङ्गा- (७१६५) विदार्यादियोगः (२) लितम् । (ग. नि. । ज्वरा. १) सम्यक्खाखसकोटीराम्चुनि चतुर्भागे विपक्वं विदारीक्षुरसं सर्पिर्मधु तैलं शृतं पयः । गवां दुग्धे चाष्टगुणे जहाति सकलान्दोषान्नृपाणां हितम्॥ पिबेच्चातुर्थकश्वासकासवातकफापहम् ॥ __भांग को ३ बार पानीसे धो कर मिट्टी के ' विदारीकन्दका रस, ईखका रस, घी, शहद पात्रमें डाल कर सुखालें और फिर उसे मंदाग्नि पर | 1 और तिल का तेल (१-१ तोला ) ले कर सबको थोड़ा सेक लें; तदनन्तर उसका चूर्ण करके, उसे | एकत्र मिला कर, पकाये हुवे दूधमें डालकर पीनेसे कपड़े से छान कर ४ भाग पोस्तके डोटे के पानी चातुथिक ज्वर, श्वास, कास, वायु और कफका और ८ भाग गायके दूधमें पका लें। इस विधिसे नाश होता है । भांग दोष रहित और राजाओंके सेवन योग्य हो (७१६६) विभीतकयोगः जाती है। ( भै. र. । कासा.) (७१६३) विडङ्गादियोगः विभीतकं घृताभ्यक्तं गोशकृत्परिवेष्टितम् । (व. से. । कृम्य.; वृ. मा.; ग. नि.) स्विन्नमग्नौ हरेत्कासं ध्रुवमास्यविधारितम् ।। विडङ्गव्योपसंयुक्तमन्नमण्डं पिवेन्नरः। दोपनं कृमिनाशाय वह्निञ्च कुरुते भृशम् ।। बहेड़े के फलको धीसे तर करके गायके गोबर में लपेट कर अग्निमें स्वेदित करें। बायबिडंग, सैठ, मिर्च और पीपल; इनका चूर्ण मिलाकर चावलोंका मांड पीनेसे कृमि नष्ट इसे मुंहमें रखनेसे खांसी अवश्य नष्ट हो होते और अग्नि दीप्त होती है। | जाती है । (७१६४) विदार्या दियोगः (१) (७१६७) विशालादियोगः (ग. नि. । शूला. २३) ( यो. र. । कामला.) विदारीदाडिमरसः सव्योषो लवणान्वितः। गोदुग्धेन विशालाया मुनिसङ्खयादलानि तु । क्षौद्रयुक्तो निहन्त्याशु शूलं दोषत्रयोद्भवम् ॥ जीरकेण युतं पेप्यं रसमेकं पलं पिबेत् ॥ बिदारी कन्द और अनारका रस (१-१ | अथवा तज्जटाद्रावं कधिं दुग्धमिश्रितम् । तोला), सेांठ, मिर्च पीपल और सेंधा नमकका चूर्ण ' पाययेत्तु प्रतिदिनमेवमेतदिनत्रयम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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