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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] चतुर्थों भागः ७१९ वराटं मणिरागश्च राजपट्टश्च गन्धकम् । । मन्दाग्नि पर रक्खें तथा बिजौ रेका रस डाल कर सर्वमेका सञ्चूर्ण्य खलमध्ये विनिक्षिपेत् ॥ घोटें । जब रस सूख जाय तो क्रमशः त्रिफला मर्दयेत्त्वग्निभानुभ्यां प्रपुटेत्रिदिनं लघु। काथ, चीतेके काथ, अम्लवेतके काथ, भंगरेके रस, भावयेत्पुटयेदेभिर्वा स्त्रींश्च पृथक पृथक् ॥ कनेरके काथ और अदरकके रसकी पृथक पृथक मातुलुङ्गवरावहिस्वम्लवेतसमाव- . १-१ भावना इसी प्रकार ( मन्दाग्नि पर पकाते हयमाराईकरसैः पाचितो लघुवह्निना ॥ वातपित्तकफोत्क्लेशान् ज्वरान् सम्मर्दितानपि। इसके सेवनसे वातज, पित्तज और कफज सन्निपातं निहन्त्याशु सर्वाङ्गैकाङ्गमारुतान् ॥ | ज्वर, सन्निपात, सर्वाङ्ग वायु, एकाङ्ग वात, ११ सेवितश्च सितायुक्तो मागधी रजसा पुनः। प्रकारका क्षय, शोष, पाण्डु, कृमि, कास, श्वास, मधुकाकसंयुक्तस्तव्याधिहरणौषधैः ॥ प्रमेह, मेद, उदरवृद्धि, अश्मरी, शर्करा, शूल, सेवितो हन्ति रोगान् हि व्याधिवारणकेशरी। प्लीहा, गुल्म और हलीमकका नाश होता है। यह क्षयमेकादशविधं शोषं पाण्डु कृमि जयेत् ॥ बल्य, वृष्य, मेध्य और रसायन है। कासं पञ्चविधं श्वास मेहमेदोमहोदरम् । अनुपान-मिश्री, पीपलका चूर्ण, शहद अश्मरीं शर्करां शूलं प्लीहगुल्मं हलीमकम् ॥ और अदरकका रस अथवा रोगोचित अन्य सर्वव्याधिहरो बल्यो वृष्यो मेध्यो रसायनः॥ | पदार्थ । अभ्रक भस्म, पारद भस्म, लोह भस्म, ताम्र (मात्रा-१ रत्ती ।) भस्म, सीसा भस्म, कांसी भस्म, मण्डूर भस्म, (७११२) वृहत्रिफलायं लौहम् विमल (रौप्य माक्षिक) भस्म, वंग भस्म, खपरिया भस्म, शुद्ध हरताल, शंख भस्म, सुहागेकी खील, (र. र. । शूला.) स्वर्ण माक्षिक भस्म, वैक्रान्त भस्म, कान्तलोह याढकं त्रिफलायाश्च चतुर्गुणजले पचेत् । भस्म, स्वर्ण भस्म, प्रवाल भस्म, मोती भस्म, पादावशिष्टं विज्ञाय कषायमवतारयेत् ।। कौड़ी भस्म, शुद्ध हिंगुल और चुम्बक पत्थर भस्म सुतप्तं निर्वपेल्लोहं गुडूच्य? शतन्तथा । तथा शुद्ध गंधक समान भाग ले कर सबको एकत्र सर्पिषः षोडशपलं तच्चूर्णैः सह योजयेत् ॥ खरल करके चीतेके काथ और आकके दूधकी | गुडूचीकन्दकदली तालमूली यवासकम् । १-१ भावना दें और फिर उसे शरावसम्पुटमें चित्रकं पिप्पलीमूलं चविकाजीरकद्वयम् ॥ बन्द करके ३ दिन तक लघुपुटमें पकावें । तदन- त्वगेलाऽरुष्करो व्योषद्विक्षारलवणत्रयम् । न्तर पुनः चीतेके काथमें और आकके दूधमें खरल विडङ्ग टङ्कणक्षारं यवानी द्विपलिकांशिकान् ।। करके इसी प्रकार पकावें । इसी तरह ३ बार पाक लोहं पचेत् तदैकध्यं यावत् सान्द्रत्वमागतम् । करें और फिर औषधको खरलमें डाल कर उसे भक्षयेन्मधुसर्पियों यथासात्म्यञ्च भोजनम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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