SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] चतुर्थो भागः पाठा, पित्तपापड़ा, मुलैठी, कुटकी, अमलतास, । (४९८०) मञ्जिष्ठादिकाथः (मध्यम) (५) सहदेवी, नीमकी छाल, कन्दूरी, बेरीकी छाल, वासा, (वृ. यो. त. त. १२०; भा. प्र. म. खं. कुष्ठा.) गिलोय, बच, करञ्जकी छाल और काकोली समान मञ्जिष्ठा वाकुची चक्रमर्दत्वपिचुमन्दकः । भाग लेकर काथ बनावें। | हरीतकी हरिद्रा च धात्री वासा शतावरी ॥ यह काथ कुष्ठको नष्ट करता है। | बला नागवला यष्टी मधुकं क्षुरकोऽपि च । (४९७९) मञ्जिष्ठादिकाथः (मध्यम) (४) पटोलस्य लतोशीरं गुडूची रक्तचन्दनम् ॥ (यो. त. त. ४१; व. से. कुष्ठा.; वृ. यो. मञ्जिष्ठादिरयं काथः कुष्ठानां नाशनः परः । त. त. ९१) | वातरक्तस्य संहर्ता कण्डूमण्डलखण्डनः ॥ मञ्जिष्ठारिष्टवासात्रिफलदहनकं द्वे हरिद्रे गुडूची मजीठ, बाबची, पांड, दालचीनी, नीमको भूनिम्बो रक्तसारः सखदिरकटुका बाकुची छाल, हर्र, हल्दी, आमला, बासा, सतावर, बला व्याधिधातः।। (खरैटो), नागबला ( गुलसकरी), मुलैठी, ताल मूर्वादन्तीविशालाकृमिरिपुजटिलात्रायमाणः । मखाना, पटोल, खस, गिलोय और लाल चन्दन सपाठा समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।। श्यामानन्तापटोलैः समरिचमगधैः साधितोऽयं यह काथ वातरक्त, कण्डू, मण्डल और समस्त कुष्ठांको नष्ट कर देता है। कवायः॥ पीतो हन्यात्समस्तान्सकल (४९८१) मञ्जिष्ठादिकाथः (लघु) (६) तनुगतानतजातान्विकारान् । (शा. ध. ख. २.; वृ. यो. त. त. १२०; वृ. नि. र.; भा. प्र. वातरक्ता.) कण्डूविस्फोटकादीनलसक मभिष्ठा त्रिफला तिक्ता वचा दारु निशाऽमृता। विषमश्चित्रपामादिदोषान् ॥ निम्बश्चैषां कृतः काथः वातरक्तविनाशनः ॥ मजीठ, नीमकी छाल, बासा, हर्र, बहेड़ा, | आमला, चीता, दोनों हल्दी (हल्दी, दारुहल्दी), पामाकपालिकाकुष्ठरक्तमण्डल जिन्मतः ॥ मजीठ, हर्र, बहेड़ा, आमला, कुटकी, बच, गिलोय, चिरायता, लालचन्दन, खैरसार, कुटकी, देवदारु, हल्दी, गिलोय और नीमकी छाल समान बाबची, अमलतास, मूर्वा, दन्तीमूल, इन्द्रायणमूल, भाग लेकर काथ बनावें। बायबिडंग, बालछड़, त्रायमाना, पाठा, काली | - यह काथ वातरक्त, पामा, कपालिकाकुष्ठ और निसोत, अनन्तमूल, पटोल, काली मिरच और पीपल रक्तमण्डलको नष्ट करता है। समान भाग लेकर काथ बनावें । । (४९८२) मञ्जिष्ठादिकाथः (वृद्ध) (७) ___ यह काथ कण्डू, विस्फोटक, अलसक, स्वित्र ( मञ्जिष्ठादिचतुःषष्टिक ) और पामा इत्यादि समस्त रक्तविकारोंको नष्ट (वृ. नि. र. त्वग्दो.; वृ. यो. त. त. १२०; करता है। यो. चि, म. अ. ४) For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy