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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चतुर्थी भागः रसप्रकरणम् ] ( ७०८३) विषशोधनम् (१) ( आ. वे. प्र. । अ. ४ विषभागांश्चणकवत्स्थूलान कृत्वा तु स्वेदयेत् । गोदुग्धे घटिकाः पञ्च शुद्धिमायाति तद्विषम् ॥ न प्रोक्तं शोधनं यस्य विषस्योपविषस्य वा । गोदुग्वे स्वेदनं तस्य कर्तव्यं शुद्धिकारकम् ॥ बछनागके चने के समान छोटे छोटे टुकड़े करके उन्हें ५ घड़ी तक गोदुग्ध में स्वेदित करें | इस प्रकार विशुद्ध हो जाता है । जिस विष या उपविषका शोधन ग्रन्थोंमें न लिखा हो उसे गोदुग्धमें स्वेदित करलेना चाहिये । इससे वह शुद्ध हो जाता है । ( ७०८४) विषशोधनम् (२) (रसे.सा.सं.) अथवा फले क्वाथे विषं शुद्धयति पाचितम् । दोलायां त्रिफला क्वाथे छागीक्षीरे च पाचितम् ॥ विषको दोलायन्त्र विधिसे त्रिफला के काथ और बकरी के दूध में पकाने से वह शुद्ध हो जाता है । ( ७०८५) विषशोधनम् (३) ( रसे. सा. सं.) गोमूत्र पूर्णपात्रे च दोलायन्त्रे विषं पचेत् । दशतोलकमानेन चादौ वैद्यो दिवानिशम् ।। १० तोले बछनागको (टुकड़े करके ) दोला यन्त्र विधिसे २४ घण्टे गोमूत्र में स्वेदित करनेसे शुद्ध हो जाता है । Rela Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८५ (७०८६) विषशोधनम् (४) ; : ( रसे. सा. सं. : र. में; आ. वे. प्र. यो. र : वृ. यो त । त. ४३ ) विषभागांश्चणकवत्स्थूलान्कृत्वा तु भाजने । तत्र गोमूत्रकं दत्त्वा प्रत्यहं नित्यनूतनम् ॥ शोषयेत्त्रिदिनादुद्धृधृत्वा तीव्रातपे ततः । प्रयोगेषु प्रयुञ्जीत भागमानेन तद्विधम् ॥ नागके चने के समान छोटे छोटे टुकड़े करके उन्हें ( कांच, चीनी या मिट्टी के पात्र में ) गोमूत्र में भिगो दें और ३ दिन तक प्रतिदिन मूत्र बदलते रहें । तदनन्तर उसे तेज़ धूपमें सुखा | इस प्रकार विशुद्ध हो जाता है । (७०८७) विषादिगुटिका ( र. र. स. । उ. अ. १९ ) विपल्वरसव्योपगन्धकानां पलं पलम् । पद्वयं हरीतक्याचित्रकस्य पलत्रयम् ॥ कौन्ती मुस्ता चतुजतिं कषींशं च विचूर्णितम् । त्रिगुणच गुडः कार्या वटिका मापसम्मिता || भक्षयेत्तां जराग्रस्तो महारोगैश्व पीडितः ॥ For Private And Personal Use Only शुद्ध बछनाग, ताम्र भस्म, शुद्ध पारद, त्रिकुटा, और शुद्ध गंधक ५-५ तोले, हर्र १० तोले, चीतामूल १४ तोले तथा रेणुका, नागरमोथा, दालचीनी, तेजपात, नागकेसर एवं इलायची १| - १| तोला ले कर प्रथम पारे गंधककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर उसे सबसे ३ गुने गुड़की चाशनी में मिला कर १-१ | मारोकी गोलियां बना लें। I
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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