SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 782
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थो भागः ७७९ घोटें और फिर थोड़ी देर अंगारों पर पका कर । कर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और . ११-१। तोलेकी गुटिका बना लें। फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर इनके सेवनसे पक और अपक्क, शूल युक्त । सबको अच्छी तरह एवं नवीन और पुराना अतिसार तथा संग्रहणी मात्रा-१ से २ रत्ती तक । रोग अवश्य नष्ट हो जाता है। इसके सेवनसे वातरक्त, ज्वर, कुष्ट, स्वच,का ( व्यवहारिक मात्रा-३ माशे । ) खुरदरापन, एवं उस वातरक्तका कि जो घुटनों (७०६६) विश्वश्वरो रसः (१) तक फैल गया हो और जिसमें हड़ी निकल आई (भै. र. । वातर. ; रस. चि. म. । स्त. २; | हो तथा अग्निमांद्य और अरुचिका नाश होता है। रसे. सा. सं. ; र. चं. ; र. रा. सु. ; (७०६७) विश्वेश्वरो रसः (२) धन्व. । वातरक्ता.) (रसे. सा. सं. । ज्वरा.) रसादश विषात्पञ्च गन्धकादश शोधितात् ।। | मृतसूतार्कतीक्ष्णश्च तालं गन्धश्च कट्फलम् । तुत्थादश पलाशस्य बीजेभ्यः पञ्च कारयेत् ॥ क्षुद्राश्वमारधुस्तूरकरहाटकनीलितः । मेषशृङ्गी वचा शुण्ठा भार्गी पथ्या च बालकम् । दशकं दशकं कुर्याच्छोषयित्वा जटात्वचः ।। धान्यकं मर्दयेत्तुल्यं पर्पटोत्थद्रवैर्दिनम् । दशकं दशकं दत्त्वा कुचिलादश नूतनात् । मर्च माष लिहेलौदैः कफपित्तमदात्यये ॥ भल्लातकाच दशकं चूर्णयित्वा भिषक्ततः ॥ रसो विश्वेश्वरो नाम प्रोक्तो नागार्जुनेन च । सुदिने च बलिं दत्त्वा वैद्यः पूजापरायणः । काकमाचीरसं चानु सैन्धवेन युतं पिबेत् ।। रक्तिकै कमितं दद्यात् सहते यदि वा द्वयम् ॥ वातरक्तं ज्वरं कुष्ठं खरस्पर्शमसौख्यदम् ।। पारद भस्म, ताम्र भस्म, तीक्ष्ण लोह भस्म, आजानुस्फुटित हन्ति विषजं वास्थिनिःसतम॥ शुद्ध हरताल, शुद्ध गन्धक, कायफल, मेढासिंगी, कुष्ठमष्टादशविधमग्निमान्यमरोचकम् । बच, सेांठ, भरगी, हर, सुगन्धबाला, और धनिया विश्वेश्वरो रसो नाम विश्वनाथेन भाषितः ।। समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर एक दिन पित्तपापड़ेके रस में खरल करें। शुद्ध पारद १० भाग, शुद्ध बछनाग ५ भाग, शुद्ध गंधक १० भाग, शुद्ध तृतिया १० मात्रा-१ माशा। भाग, ढाक (पलाश ) के बीज ५ भाग, तथा | इसे शहदके साथ सेवन करनेसे कफ पित्तज कटेली, कनेर, धतूरा, अकरकरा और नील; इनकी मदात्यय ( और ज्वर) का नाश होता है। जड़की सूखी हुई छाल दस दस भाग एवं शुद्ध अनुपान---सेंधा नमक युक्त मकोय का नवीन कुचला और भिलावा १०-१० भाग ले ' क्वाथ । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy