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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थो भागः ७४१ यह रस वृष्य, बल वर्द्धक, अग्नि दीपक और (६९८६) वातज्वरारि रसः वयःस्थापक है तथा खञ्जता, पङ्गता, कुब्जता आदि । (र. का. धे । ज्वरा.) रोगांको नष्ट करता है। गन्धकं दरदं सूतं खल्वे तुल्यं विमर्दयेत् । इसके सेवनसे रोगी रोग मुक्त हो जाते हैं भावयेदाकद्रावैः सप्तधा पिप्पलीजलैः ॥ और स्वस्थ व्यक्तियोंका स्वास्थ्य स्थिर रहता है। । मरिचस्य कपायेण विजयास्वरसेन च । कृष्णधत्तूरनीरेण प्रत्येक सप्तभावनाः ॥ (६९८५) वातचिन्तामणिरसः (वृहद्) पिप्पलीमधुना ह्येष रसो वातज्वरापहः। ( भै. र. ; धन्व. । वातव्या.) वातज्वरारिनामायं प्रयुक्तो रससागरे ॥ भागत्रयं स्वर्णभस्म द्विभागं रौप्यमभ्रकम् ।। शुद्ध गन्धक, शुद्ध हिंगुल और शुद्ध पारद समान भाग ले कर सबको एकत्र खरल करें और लौहात् पश्च प्रवालश्च मौक्तिकं त्रयसम्मितम् ।। फिर अदरकके रस, पीपल तथा काली मिर्च के काथ, भस्ममृतं सप्तकञ्च कन्यारसविमर्दितम् । एवं भांग और काले धतूरेके स्वरसकी सात वल्लमात्रा वटी कार्या भिषग्भिः परियत्नतः ॥ सात भावनाएं दे कर ( २-२ रत्तीकी ) गोलियां यथाव्याध्यनुपानेन नाशयेद्रोगसङ्कुलम् । बना लें। वातरोग पित्तकृतं निहन्ति नात्र चिन्तनम् ॥ इन्हें पीपलके चूर्ण और शहदके साथ सेवन वृद्धोऽपि तरुणस्पर्धी कन्दर्पसमविक्रमः। करनेसे वातञ्चर नष्ट होता है। दृष्टः सिद्धफलश्चायं वातचिन्तामणिस्त्विह ॥ वातनाशनो रसः ___स्वर्ण भस्म ३ भाग, रौप्य भस्म और अभ्रक ( र. रा. सु. ; धन्व. ; र. चं. ; रसे. सा. सं.। भस्म २-२ भाग, लोह भस्म ५ भाग, प्रवाल वातरोगा. ; यो. त.। त. ४० ; वृ. यो. भस्म तथा मोती भस्म ३-३ भाग और पारद त. । त. ९० ; शा. सं. । खं. २ अ. १२) भस्म सात भाग ले कर सबको एकत्र प्र. सं. ६९५१ वडवानल रसः (६) मिला कर घृतकुमारीके रसमें खरल करके ३-३ देखिये। रत्तोकी गोलियां बना लें। (६९८७) वातनाशिनी वटी (र. चि. म. । स्त. ९) इन्हें यथोचित अनुपानके साथ सेवन करनेसे दशटङ्कमिता ग्राह्या कुचिला मरिचानि च । वातज और पित्तज रोग नष्ट होते हैं तथा वृद्ध पुरुष दशमांशानि कार्याणि वटिका मापसम्मिता ॥ भी तरुणके समान हो जाता है। कर्तव्या शोषिता दद्यात्प्रभाते वातरोगिणम् । यह सिद्ध फल अनुभूत प्रयोग है। दण्डापतानकश्चैव पक्षाघातस्तथैव च ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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