SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 735
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि (६९६७) वसन्तकुसुमाकररसः वलिपलितहृन्मेध्यः कामदः सुखदः सदा ! (वृ. यो. त । त. ७६ ; भै. र. । रसायना.; । मेहन्नः पुष्टिदः श्रेष्ठः परं वृष्यो रसायनम् ॥ र. रा. मु.। यक्ष्मा. ; र. चं.। राजयक्ष्मा.; आयुर्वृद्धिकरं पुंसां प्रजाजननमुत्तमम् । यो. र. ; भै. र. । प्रमेहा. ; नपु. मृ. । त. ५ ; क्षयकासतृषोन्मादश्वासरक्तविषार्तिजित् ॥ यो. त. । त. २७ ; वृ. नि. र. ; रसे. सा. सं. । सिताचन्दनसंयुक्तमम्लपित्तादिरोगजित् । रसायना. ; र. र.; यो. र. ; वृ. नि. र. । शुक्लपाण्डामयाञ्शूलान्मूत्राघाताश्मरी हरेत् ॥ योगवाहि विदं सेव्यं कान्तिश्रीबलवर्धनम् । यश्मा. ; धन्व. । वाजीकर. , प्रमेहा. ; र. रा. सु.। सुसात्म्यमिष्टभाजी च रमयेत्पमदाशतम् ॥ रसायना. ; र. र. स. । उ. अ. १७)* मदनं मदयेन्मदमुज्ज्वलयपृथाद्वौ हाटकं चन्द्रं त्रयो बङ्गाहिकान्तजम् । प्रमदानिवहानतिविठ्ठलयन् । चत्वारः सूतमभ्रंच प्रवालं मौक्तिकं तथा ॥ सुरतैः सुखदैर्गतिविच्यवनभावना गव्यदुग्वेक्षुवासाश्रीद्विजलै निशा। भवसारजुषामयमेव सुहृत् ॥ मोचकन्दरसैः सप्त क्रमाद्भाव्यं पृथक्पृथक् ॥ स्वर्ण भस्म २ भाग, चांदी भस्म २ भाग, शतपत्ररसेनैव मालत्याः कुसुमैस्तथा। .. बंग भस्म ३ भाग, नाग भस्म ३ भोग, कान्त लोह पश्चान्मृगमदैर्भाव्यः सुसिद्धो रसराड् भवेत् ।। भस्म ३ भाग, रससिन्दूर, अभ्रक भस्म, प्रवाल कुसुमाकरविख्यातो वसन्तपदपूर्वकः। भस्म और मोती भस्म ( पाठान्तरके अनुसार हीरा वल्लद्वयमितः सेव्यः सिताज्यमधुसंयुतः॥ भस्म भी) ४-४ भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके गोदुग्ध, ईखके रस, बासा (अडूसे) के रस, * र. र. स. में रौप्य और नागका अभाव सफेद चन्दनके काथ, सुगन्ध बालाके काथ, खसके है तथा अभ्रक २ भाग लिखा है। काथ, हल्दीके काथ या स्वरस, केलेकी जड़के १ शुद्धमभ्रमिति पाठान्तरम् । (कुछ ग्रन्थोंमें रस, कमलके रस और चमेलीके फूलोंके रसकी पारदको अभाव है ). ( पाठान्तरके अनुसार केसरके पानीकी भी ) पृथक् २ पवीति पाठान्तरम् । पृथक् सात सात भावना दे कर अन्तमें कस्तूरीके - ३ यो. त. में खस और सुगन्धबालाके स्थान- पानी में घोट कर ४-४ रत्तीकी गोलियां बना लें । पर श्वेत कञ्जकी भावना लिखी है । ___ इसे मिश्री, घी और शहदके साथ सेवन ४ कई ग्रन्थोंमें श्री ( सफेद चन्दन ) खस करनेसे वलिपलित, प्रमेह, क्षय, कास, तृषा, उन्माद, और हल्दीकी भावनाओंका अभाव है तथा लाक्षा- श्वास, रक्त दोष और विष विकारका नाश होता रस और केले के फूलोंकी भावना अधिक लिखी हैं। तथा मेधा, काम शक्ति, पुष्टि, वीर्य और आयुकी ५ मालत्या कुङ्कुमोदकैरितिः पाठान्तरम् ।। वृद्धि होती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy