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चूर्णप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः सेंधा नमक १ भाग, अजवायन २ भाग, यह चूर्ण पाचन और ग्राही हैं। लाल चित्रक ३ भाग, पीपल ४ भाग और सांठ
इसके सेवनसे तृष्णा, अरुचि, ज्वरातिसार, ५ भाग एवं हर्र १५ भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
प्रमेह, संग्रहणी, गुल्म, प्लीहा, कामला, पाण्डु और ___ यह चूर्ण अत्यन्त अग्निवर्धक है।
शोथका नाश होता है। (मात्रा-५-६ माशे । अनुपान उष्ण जल । )
(६६५२) व्योषादिचूर्णम् (२) वैश्वानरचूर्णम् (३)
(ग. नि. । स्वरभंगा. १३) (यो. त. । त. २४) प्र. सं ६२१६ "लघु वश्वानर चूणम्
, व्योषं हरीतकी क्षारश्चव्यं भार्गी सचित्रका।
लिवाचणं च मधुना मद्यं तीक्ष्णं च शीलयेत्॥ देखिये ।
___ स्वरभंग रोगमें सांठ, मिर्च, पीपल, हरे, (६६५१) व्योषादिचूर्णम् (१)
| जवाखार, चव, भरंगी और चीता समान भाग ले ( वृ. यो. त.। त. ६५ ; भै. र. । ज्वराति.; यो. कर, चूर्ण बनाकर शहदके साथ सेवन करना तथा र. । अतिसारा. ; धन्व.; व. से. ; वू. नि.
| तीक्ष्ण मध पीना चाहिये। र. ; च. द.)
(६६५३) व्योषादिचूर्णम् (३) व्योषं वत्सकबीजञ्च निम्बभूनिम्बमार्कवम् । चित्रकं रोहिणी पाठां दावीमतिविषां समाम् ॥
(ग. नि. । छर्य. १४) श्लक्ष्णचूर्णीकृतं सर्व तत्तुल्या वत्सकत्वचः । व्योषं त्रिफला दुरालभा सर्वमेकत्र संयोज्य पिबेत्तण्डुलवारिणा ॥
जम्बाम्रास्थि यवाग्रज त्रित् । सक्षौद्रं लिहेदेतत् पाचनं ग्राहिमेषजम् ।
लीहा मधुना निवारयेतृष्णारुचिप्रशमनं ज्वरातीसारनाशनम् ॥ प्रमेहं ग्रहणीदोषं गुल्मं प्लीहानमेव च ।
च्छर्दिश्लेष्मविकारजां नरः॥ कामलां पाण्डुरोगश्च श्वयथुश्च विनाशयेत् ।। सोंठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल, इन्द्रजौ, नीमकी छाल, ।
धमासा, जामन और आमकी गुठली, जवाखार चिरायता, भंगरा, चीता, कुटकी, पाठा, दारु हल्दी
और निसोत समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । और अतीस १-१ भाग तथा कुड़ेकी छाल सबके
इसे शहदके साथ चाटनेसे कफज छर्दि नष्ट बराबर ले कर चूर्ण बनावें।
होती है। इसे शहदके साथ चाटकर तण्डुल जल (आधा आधा माशा चूर्ण थोड़ी थोड़ी देर (चावलोंका पानी) पीना चाहिये । बाद चाटना चाहिये ।)
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