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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः विकारादि इन्द्रायणकी जड़, कुटकी, नागरमोथा, कूट, सांठ, हींग, सुहागा, पीपल और काला नमक देवदारु और इन्द्रजौ ११-१। तोला; मूर्वा २॥ (सञ्चल) समान भाग ले कर चूर्ण बनावें, एवं उसे तोले और अतीस ७॥ माशे ले कर चूर्ण बनावें। सहजनेकी जड़के रसकी भावना दे कर सुखा लें । इसे जलके साथ पी कर थोड़ा शहद इसके सेवनसे शूल नष्ट होता और क्षुधावृद्धि चाटना चाहिये। होती है। इसके सेवनसे पाण्डु, ज्वर, दाह, खांसी, (मात्रा-१॥-२ माशे । ) श्वास, अरुचि, गुल्म, आनाह, आमवात और रक्तपित्तका नाश होता है। (६६३१) विश्वादिचूर्णम् (१) (मात्रा-३-४ माशे । ) (व. से. । अजीर्णा.) (६६२८) विशालादियोगः (१) शुण्ठीचूर्णसमायुक्तं यवक्षारं समालिहेत् । (व. से. । विषा.) सर्पिषा प्रातरुत्थाय ततो वह्निप्रदीपनम् ॥ विशालाङ्कोटमूलश्च तिलमूलं सिता मधु । सेठका चूर्ण और जवाखार समान भाग घृतेनाखुविषं हन्ति पीतमात्रश्च दुस्तरम् ॥ लेकर एकत्र मिलावें। इन्द्रायणकी जड़, अङ्कोटकी जड़, तिलकी इसे प्रातःकाल घीमें मिला कर चाटनेसे अग्नि जड़ और खांड समान भाग ले कर चूर्ण बनावें || दीप्त होती है। इसे शहद और घीमें मिला कर पीनेसे दुस्तर (मात्रा-१ माशा ।) मूषकविष नष्ट होता है। (६६३२) विश्वादिचूर्णम् (२) (६६२९) विशालादियोगः (२) (वै. जी. । वि. ४) | विश्वाकणाशिवाचूर्णः ससितः समधुः स्मृतः। गन्धवतेलसम्मिश्र विशालामूलज रजः। नस्यवद्विश्वगुडयोहिकाधिकारकारकः ॥ क्षीरेण पीतं सप्ताहाद्धिं हन्ति न संशयः ॥ सांठ, पीपल और आमला १-१ भाग तथा इन्द्रायणकी जड़के चूर्णको अरण्डीके तेलमें मिश्री ३ भाग ले कर चूर्ण बनावें । मिला कर दूधके साथ पीनेसे १ सप्ताहमें वृद्धि रोग इसे शहदमें मिलाकर चाटनेसे हिचकी नष्ट (अन्त्रवृद्धि) का नाश हो जाता है । होती है। (मात्रा-१-१॥ माशा ।) सेठ और गुड़की नस्य लेनेसे भी हिचकी (६६३०) विश्वभेषजचूर्णम् | रुक जाती है। (वृ. नि. र. । अजीर्णा.) ____ (६६३३) विश्वादिचूर्णम् (३) विश्वभेषजं हिङ्गुटकणं मागधी च सौवर्चलं . त्विदम (यो. र. । स्त्री रोगा.) शिग्रुपादजै वितं रसःशूलनाशनं क्षुत्प्रबोधनम्।' पीतं विश्वमजाक्षीरैर्नाशयेद्विषमज्वरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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