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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ५६७ निम्बबीजगजपिप्पलोकी एलापाठाजाजीकट्वङ्गक्वाथ एष सरणज्वरापहः॥ ___ फलाजमोदासिद्धार्थवचाः॥ इन्द्रजौ, देवदारु, कुटकी, धनिया, बेलगिरी, जीरकहिङ्गुबिडङ्ग पशुगन्धा पञ्चकोलकं हन्ति । पीपल, गोखरु, नीमके बीज, गजपीपल और पाठा चलकफमेदः पीनसगुल्मज्वरशूलदुर्नाम्नः ॥ समान भाग ले कर काथ बनावें । इसके सेवनसे इन्द्रजौ, मूर्वा, भरंगी, कुटकी, काली मिर्च, ज्वरातिसार नष्ट होता है। अतीस, मजीठ, इलायची, पाठा, जीरा, सोनापाठा, त्रिफला, अजमोद, सरसों, वच, जीरा, हींग, बाय(६४८२) वत्सकादिक्वाथः (४) बिडंग, बनतुलसी और पञ्चकोल (पीपल, पीपला(च. द. । अति. ३; शा. सं. । खं. २ अ. २ ; मूल, चव, चीता, सांठ) समान भाग ले कर काथ वृ मा.; भै. र. ; धन्व. । अतिसा. ; ग. नि.। बनावें । अथवा इनका चूर्ण करके रक्खें। अति. २ ; यो. चि. म.अ. ४ : भा. प्र.। इसके सेवनसे. वोय. कफ. मेद, पीनस. म. ख. २ ; वृ. नि. र. । रक्ताति. ; गुल्म, ज्वर, शूल और अर्शका नाश होता है । वृ. यो. त. । त. ६४ ; हा. सं. । (६४८४) वत्सादन्यादिकषायः (१) ___ स्था. ३ अ. ३) (३. मा. । वातरक्ता. ; वृ. नि. र.) सवत्सकः सातिविषः सबिल्वः सोदीच्यमुस्तैश्च कृतः कषायः। वत्सादन्युद्भवः क्वाथ: पीतो गुग्गुलुसंयुतः। सामे सशूले सह शोणिते च। समीरणसमायुक्तं शोणितं सम्प्रसाधयेत् ॥ चिरप्रवृत्तेऽपि हितोऽतिसारे ॥ गिलोयके काथमें गूगल मिला कर पीनेसे वातरक्त नष्ट हो जाता है। इन्द्रजौ, अतीस, बेलगिरी, सुगन्धबाला और नागरमोथा Xसमान भाग ले कर क्वाथ बनावें । (६४८५) वत्सादन्यादिक्वाथः (२) इसके सेवनसे शूलयुक्त पुराना रक्तातिसार (भा. प्र. । म. खं. २ ; वृ. नि. र. । ज्वरा.) नष्ट होता है। वत्सादनीवत्सकवारिवाह (६४८३) वत्सकादिगणः विश्वम्भरानिम्बविषाः सविश्वाः ज्वराऽतिसारं त्वरितं जयन्ति ( वा. भ. । सू. अ. १५) विश्वामृतावत्सकवारिवाहाः॥ वत्सकमूर्वाभाींकटुका गिलोय, इन्द्रजौ, नागरमोथा, चिरायता, मरिचं घुणप्रिया च गण्डीरम् । नीमकी छाल, अतीस और सांठ समान भाग लेकर x भा. प्र. में कचूर अधिक लिखा है। | काथ बनावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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