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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [लकारादि (६३८९) लोहत्रिफलायोगः _तीक्ष्ण लोहको मूषामें तपा कर लाल करनेके ( यो. र. । शूला.) पश्चात् उसमें इसका प्रक्षेप देनेसे लोह पानीके तीक्ष्णायचूर्णसंयुक्तं त्रिफलाचूर्णमुत्तमम् ।। समान द्रवित हो जाता है। . प्रयोज्यं मधुसर्पिा सर्वशूलनिवारणम् ॥ __(६३९२) लोहद्रुतिः (३) तीक्ष्ण लोह भस्म और त्रिफला चूर्ण समान (र. र. स. । पू. अ. ५) भाग लेकर दोनोंको एकत्र खरल करके रक्खें । | मुरदालिभवं भस्म नरमूत्रेण गालितम् । इसे शहद और घीके साथ देनेसे समस्त त्रिःसप्तवारं तत्क्षारवापाकान्तद्रुतिर्भवेत् ।। प्रकारके शूल नष्ट होते हैं। देवदाली ( बिंडाल) की भस्मको मनुष्यके ( मात्रा-४ रत्ती ।) मूत्रकी २१ भावना दे कर सुखा लें। ___ कान्त लोहको तपा कर लाल करके उसमें (६३९०) लोहद्रुतिः (१) इसका प्रक्षेप देनेसे लोह द्रुत हो जाता है । ( र. र. स. । पू. खं. अ. ५) (६३९३) लोहद्रुतिः (४) त्रिसप्तकृत्वो गोमूत्रे जालिनोभस्मभावितम् ।। शोषयेत्तस्य वापेन तीक्ष्णं मूषागतं द्रवेत् ॥ (र. र. स. । पू. अ. ५) | गन्धकं कान्तपाषाणं चूर्णयित्वा समं समम् । ___ कड़वी तोरीकी भस्मको गोमूत्रकी २१ भावना द्रुते लोहे प्रतीवापो देयो लोहाष्टकं द्रवेत् ।। दे कर सुखा लें। गन्धक और कान्तपाषाण बराबर बराबर तीक्ष्ण लोहको मूषामें तपा कर लाल करके ले कर एकत्र पीस लें । उसमें इस भस्मका प्रक्षेप देनेसे लोह द्रवित हो | लोहको पिघला कर उसमें यह चूर्ण डालनेसे जाता है। लोह ( आठों धातु ) द्रवित हो जाते हैं। (६३९१) लोहद्रुतिः (२) (६३९४) लोहद्रुतिः (५) (र. र. स. । पू. अ. ५) (र. र. स. । पू. अ. ५) सुरदालिभस्मगलितं त्रिसप्त देवदाल्या द्रवैर्भाव्यं गन्धकं दिनसप्तकम् । कृत्वाऽथ गोजले शुष्कम् । तेन प्रवापमात्रेण लोहं तिष्ठति सूतवत् ॥ वापेन सलिलसदृश देवदाली (बिंडाल) के रससे सात दिन तक करोति मूषागतं तीक्ष्णम् ॥ गन्धकको भावित करके सुखा लें । देवदाली (बिंडाल) की भस्मको गोमूत्रकी | लोहेको तपाकर लाल करके उसमें यह गं एक २१ भावना दे कर सुखा लें। | डालनेसे लोहा पारदके समान द्रवित हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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