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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [लकारादि कौड़ीका चूर्ण ५ तोले, शुद्ध पारद ५ तोले, दूसरी हाण्डी ढककर दोनोंके जोड़को अच्छी तरह शुद्ध गन्धक ५ तोले और सुहागा १। मोशा लेकर बन्द कर दें और उसके सूखने पर इस डमरुप्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर | यन्त्रको चूल्हे पर रख कर उसके नीचे तर्जनी उसमें अन्य औषधे मिला कर सबको जम्बीरी उंगलीके समान मोटी बत्तीका दापक जलावें और नीबूके रस में घोट कर गोला बनावें और उसे | ऊपरके पात्र पर भीगा हुवा कपड़ा रखते रहें । सुखा कर शरावसम्पुटमें बन्द करके वराहपुटमें तदनन्तर ४ पहर बाद दीपक बुझा दें और हाण्डीके पकावें । स्वांग-शीतल होने पर सावधानी पूर्वक जोड़को यह रस कुष्ठ और रक्तपित्तके अतिरिक्त अन्य | खोल कर ऊपरको हाण्डीमें लगे हुवे सत्वको समस्त रोगांको नष्ट और पुष्टि, वीर्य, ओज, कान्ति | | निकाल लें। तथा लावण्यकी वृद्धि करता है। मात्रा---२ से ४ रत्ती तक । (६३८३) लोबानसत्वयोगः इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे श्वास और खांसीका नाश होता है। यह राजाओंके ( र. चं. ; र. रा. सु. । श्वासा.) योग्य औपध है। विषं पलमितं प्रोक्तं लोवानं कुडवं मतम् । सितं सोमलकं चैव पलमानमुदीरितम् ॥ लोहगर्भरसः वितस्तिमात्रे सेहुण्डकाष्ठे चैव विनिक्षिपेत् । | ( र. का. धे. ; र. रा. सु. ; र. र. स. । पाण्डु.) सर्वमेकत्र सञ्चूर्ण्य हण्डिकायां निधापयेत् ॥ - प्र. सं. ४४०२ " पितपाण्ड्वारिरसः " उमरुयन्त्रविधिना सत्त्वं निष्कासयेद्बुधः।। | देखिये । तर्जनीप्रतिमावर्ति दीपे धृत्वा तु ज्यालयेत् ॥ (६३८४) लोहगुटिका (१) यन्त्रस्याधो वेदयामं दीप्ताग्निं तत्र दापयेत् । (र. का. धे. । ज्वरा.) ऊर्ध्वलग्नं शुद्धसत्त्वं स्थापयेच्च करण्डके ॥ त्रिफलामृतलोहं च भृङ्गराजं च चूर्णितम् । मुनाद्वयं त्रयं वाऽपि चतुर्गुञ्जमथापि वा। चूर्णमर्जुनपत्रस्प त्रिजातकशिलाजतू ॥ श्वासकासनिवृत्त्यर्थे बलं ज्ञात्वा प्रयोजयेत् ॥ त्र्यूषणं तुल्यतुल्यांशं सर्वेषां च समांशतः । राजयोग्यमिदं सत्त्वं विख्यातं रससागरे ॥ क्षौद्रेण वटिका कार्याः माषमा भक्षयेत् ।। शुद्ध बछनाग ५ तोले, कौड़िया लोबान २० वातपित्तज्वरं हन्यादनुपानं विना गुटी ।। तोले और शुद्ध सफेद संखिया ५ तोले लेकर हर्र, बहेड़ा, आमला, गिलोय, लोह भस्म, सबको एकत्र खरल करके १ बालिश्त लम्बे थोहर | भंगरा, अर्जुनके पत्ते, दालचीनी, तेजपात, इलायची, (सेंड) के टुकड़ेके भीतर भर दें और फिर उसे | शिलाजीत, और सोंठ, मिर्च तथा पीपल; इनका कुचल कर एक हाण्डीमें रक्खें तथा उसके ऊपर | चूर्ण समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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