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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् चतुर्थो भागः (६३३४) लक्ष्मीविलासरसः (२) काथमें ३-३ दिन घोटें । तदनन्तर इलायची, ( रसे. सा. सं. ; धन्व. ; भै. र.; र. रा. जायफल, तेजपात, लौंग, अजवायन, जीस, सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा और आमला समान भाग सु. । कासा.) ले कर सबको एकत्र कूटकर काथ बनावें और शुद्धसूतं सतालश्च तालाई रसखर्परम् ।। उसमें उपरोक्त औषधको ३ दिन खरल करके वङ्गं तानं घनं कान्तं कांस्यं गन्,' पलं पलम्॥ चनेके बराबर गोलियां बना कर छायामें सुखा लें । केशराजरसेनैव भावयेदिवसत्रयम् । अनुपान-शीतल जल । कुलत्थस्य रसेनैव भावयेच्च पुनः पुनः ॥ इसके सेवनसे हर प्रकारकी खांसी, क्षयज एलाजातीफलाख्यश्च तेजपत्रं लवकम् । | खांसी, ज्वर युक्त तथा ज्वर रहित श्वास, हलीमक, यमानीजीरकञ्चैव त्रिकटु त्रिफला समम् ॥ पाण्डु, शोथ, शूल, प्रमेह और अर्शका नाश तथा भावयेच्च रसेनैव गोलयेत्सर्वमौषधम् । बलवृद्धि होती है। छायाशुष्का वटी कार्या चणकप्रमिता शुभा अपथ्य-शाक, अम्ल पदार्थ और भृष्ट शीताम्बुना पिबेद्धीमान्सर्वकासनिवृत्तये । पदार्थों से परहेज़ करना चाहिये। क्षयकासं तथा श्वास सज्वरं वाऽथ विज्वरम् । (६३३५) लक्ष्मीविलासरसः (३) हलीमकं पाण्डुरोगं शोथं शूलं प्रमेहकम् ॥ (र. चं. ; यो. र.; र. रा. सु. ; वृ. नि. र. । अर्शीनाशं करोत्येव बलवृद्धिश्च कारयेत् । ___ राजयक्ष्मा.) वजेयेच्छाकमम्लञ्च भृष्टद्रव्यं हुताशनम् ॥ सुवर्णताराभ्रकताम्रवङ्गशुद्ध पारद और शुद्ध हरताल ५-५ तोले, त्रिलोहनागामृतमौक्तिकानि । खपरिया २॥ तोले, बंग भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक एतत्समं योज्य रसस्य भस्म भस्म, कान्त लोह भस्म, कांस्य भस्म और शुद्ध खल्वे कृतं स्यात्कृत्कज्जलीकम् ॥ गन्धक ५-५ तोले ले कर प्रथम पारे गन्धककी सुमर्दयेन्माक्षिकसम्प्रयुक्तं कज्जलो बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां तच्छोषयेवित्रिदिनं च धर्म । मिला कर सबको काले भंगरेके रस और कुलथीके तत्कल्कमूषोदरमध्यगामि यत्नात्कृतं तार्थपुटेन पक्षम् ॥ भै. र. में गन्धकका अभाव है तथा " नतं यामाष्टकं पावकमर्दितं च भृङ्गं वंशगर्भ कर्षमात्रन्तु कारयेत् ।" लक्ष्मीविलासो रसराज एषः। पाठ अधिक है । अर्थात इस प्रयोगमें ११-१॥ क्षये त्रिदोषप्रभवे च पाण्डौ तोला तगर, भांग और बंसलोचन भी डालना सकामला सर्वसमीरणेषु ॥ चाहिये। शोफप्रतिश्याय प्रनष्टवीर्य For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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