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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९६ www.kobatirth.org (६२९३) लोधाद्यं तैलम् ( वृ. यो. त. । त. १२८ ) लोखादिरमअष्ठायाश्चापि साधितम् । तैलं संशोधनं हन्याद्दन्तनाडीगतिं क्रमात् ॥ भारत - भैषज्य रत्नाकरः कल्क - लोध, खैरसार, मजीठ और मुलैठी २|| - २॥ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । काथ - उपरोक्त ओषधियां ४०-४० तोले लेकर सबको अधकुटा करके १६ सेर पानीमें पकावें और ४ सेर पानी शेष रहने पर छान लें 1 १ सेर तिल के तेल में उपरोक्त कल्क और काथ मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको छान लें । करता है । यह तैल दन्त नाड़ी (दांत के नासूर ) को नष्ट [ लकारादि बालोंको उखाड़नेके पश्चात् कुसुम्भ (कैड) के तेल की मालिश करने से पुनः बाल नहीं निकलते । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६२९५) लोहकिद्वाचं तैलम् ( रा. मा. शिरो रोगा. ) यल्लो हट्टोत्पलसारिवाभ्यां समावाभ्यां त्रिफलान्विताभ्याम् । विपच्यते तैलमपास्यति द्राक् शीर्षामयान्दारुणकादिकांस्तत् ॥ मण्डूर, अनन्तमूल, काला भंगरा और त्रिफलाके कल्कसे तैल पाक करके रक्खें । इसकी मालिशसे दारुणक इत्यादि शिरो रोग नष्ट होते हैं । (६२९४) लोमनाशकतैलम् ( प्रत्येक ओषधि ५ तोले -- मिलित ३० तोले । तिलका तेल ३ सेर । पानी १२ सेर । (भै. र. । स्त्री रोगा. ) कुमुम्भतैलाभ्यङ्गो वा रोम्णामुत्पाटितेऽन्तकृत् || एकत्र मिला कर पानी जलने तक पकावें । ) इति लकारा दितैलमकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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