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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः - काथ-६ सेर कटेलीको ४८ सेर पानीमें (६२६८) लघुषट्पलं घृतम् पकावें और १२ सेर शेष रहने पर छान लें। ( वृ. यो. त. । त. ५८) ३ सेर घीमें उपरोक्त कल्क और काथ मिला विश्वाग्निचव्यमगधामगधाजटाभिकर पकावें। जब काथ जल जाए तो घीको राभिः पलप्रमितिभिः सयवाग्रजाभिः । छान लें। सर्पिः शृतं पयसि पट्पलमेतदर्शः ____ यह घृत पांच प्रकारकी खांसीको नष्ट | प्लीहोदरज्वरिषु गुल्मिषु पथ्यमुक्तम् ।। करता है। सेांठ, चीता, चव, पीपल, पीपलामूल और (६२६७) लघुचव्यादिवृतम् | जवाखार ५-५ तोले ले कर कल्क बनावें । तद(यो. र. । अर्शी. ) नन्तर यह कल्क, १ सेर घी और ४ सेर दूध एकत्र चव्यतिक्ताकलिङ्गानि शताहा लवणानि च । । मिला कर पकावें । जब दूध जल जाए तो घीको सपिरों विकारनं ग्रहणीदीपनं परम् ॥ छान लें। ___ कल्क--चव, कुटकी, इन्द्रजौ, सोया और यह घृत अर्श, प्लीहोदर, ज्वर और गुल्ममें पांचों नमक (सेंधा, सञ्चल, सामुद लवण, कोच | उपयोगी है। लवण, बिड लवण) ५-५ तोले । _ (६२६९) लशुनघृतम् (१) काथ--उपरोक्त द्रव्य १-१ सेर ले कर (ग. नि. । घृता १) सबको एकत्र मिला कर अधकुटा करें और ७२ प्रस्थं लशुनबीजानां कण्टकार्यास्तथैव च । सेर पानीमें पकावें । जब १८ सेर पानी शेष रहे आटरुषकप्रस्थं च जलद्रोणे विपाचयेत् ।। तो छान लें। द्राक्षाया गोस्तनायाश्च कुडवं चात्र मिश्रयेत् । ४॥ सेर घीमें उपरोक्त काथ और कल्क | तत्र दद्यादघृतप्रस्थं गोक्षीरमस्थमेव च ॥ मिलाकर पकावें । जब काथ जल जाए तो घृतको लशुनस्य तु पिष्टस्य पलं निष्पीड्य योजयेत् । छान लें। आटरूषकपत्राणां पेषयित्वा पलं तथा ॥ यह घृत अर्शको नष्ट और ग्रहणीको दीप्त । एतन्मृद्वमिना सिद्धं शीतं पूतमथापि वा। करता है। द्विपलं शर्कराचूर्ण क्षीरार्धकुडवं तथा ॥ लघुपश्चगव्यं घृतम् त्वक्षीर्याश्च पलार्ध हि तत्सर्व खजमूच्छिाम् । (ग. नि. ; पू. मा. । अपस्मारा.) | निदध्याद्भाजने शुद्ध काश्चने राजतेऽपि वा ॥ प्र. सं. ४ ०४८ " पश्चगव्यं घृतम् ” देखिये। एतत्मायोगिकं सपिरिमान् व्याधीन् व्यपोहति । लघुफलघृतम् कासं श्वासं ज्वरं गुल्मं कार्थ छर्दिमरोचकम् ॥ (शा. सं. । ख. २ अ. ९) | हृद्रोगं पार्श्वशूलं च क्षतक्षीणं प्लीहोदरम् । प्र. सं. ४५३० " फलघुतम् ” देखिये । जीवनं बृंहणं वृष्यं पाण्डुश्वयथुनाशनम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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