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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] .. चतुर्थों भागः ४७३ तुनका तेल १।-१॥ तोला, सोंठ ५ तोले और (६२२८) लवणत्रितयादिचूर्णम् मिश्री सबके बराबर लेफर यथा विधि चूर्ण - (शा. सं. । खं. २ अ. ६) बनावें। लवणत्रितयं क्षारौ शतपुष्पाद्वयं वचा। ___यह चूर्ण रोचक, अग्निवर्द्धक, सुगन्धी, हृय, अजमोदाजगन्धा च हपुषा जीरकद्वयम् ॥ क्षयनाशक, और बलवर्द्धक है । यह राजाओंको मरिचं पिप्पलीमूलं पिप्पली गजपिप्पली । सेवन कराने योग्य औषध है। हिङ्गश्च हिङ्गपत्री च सठी पाठोपकुश्चिका ॥ शुण्ठीचित्रकन व्यानि विडङ्गं चाम्लवेतसम् । (६२२७) लवङ्गाद्यं चूर्णम् (२) दाडिमं तिन्तिडीकं च त्रिवृदन्ती शतावरी॥ (ग. नि. । चूर्णा.) इन्द्रवारुणिका भार्गी देवदार्यवानिका । लवङ्गजातीफलपिप्पलीनां कुस्तुम्बरुस्तुम्बरुणी पौष्करं बदराणि च ॥ भागं समं कर्षमितं प्रकुर्यात् । शिवा चेति समांशानां चूर्णमेकत्र कारयेत् । पलार्धमेकं मरिचस्य दद्या भावयेदानेकरसैबीजपुररसैस्तथा ॥ त्पलानि चत्वारि महौषधस्य ।। तत्पिबेत्सर्पिषा जीर्णमयेनोष्णोदकेन वा । सितासमं चूर्णमिदं प्रयोजये कोलाम्भसा वा तक्रेण दुग्धेनौष्ट्रेण मस्तुना ।। यकृत्प्लीहकटीशूलगुदकुक्षिहदामयान् । त्पसह्य रोगा-प्रबलान्निहन्यात् । अर्शीविष्टम्भमन्दाग्निगुल्माष्ठीलोदराणि च ।। कासक्षयारोचकमेहगुल्म हिक्काध्मानश्वासकासाञ्जयेदेतन संशयः । मीसि चोग्रान्ग्रहणीप्रदोषान् ॥ एतैरेवौषधैः सम्यग् घृतं वा साधयेद्भिषक् ॥ हत्कण्ठनासावदनप्रबोधं सेंधा नमक, काला नमक, बिड नमक, जवाकरोति सन्दीपयते च वह्निम् ॥ | खार, सजीखार, सौंफ, सोया, बच, अजमोद, लौंग, जायफल और पीपल, ११-१। तोलो, बनतुलसी, हपुषा, सफेद और काला जीरा, काली मिर्च २॥ तोले; सोंठ २० तोले और मिश्री सबके मिर्च, पीपलामूल, पीपल, गजपीपल, हिंगुपत्री, होंग, कचूर, पाठा, कलौंजी, सोंठ, चीतामूल, चव, बराबर लेकर चूर्ण बनावें। बायबिडंग, अम्लनेत, अनारदाना, तिन्तड़ीक, इसके सेवनसे खांसी, क्षय, अरुचि, प्रमेह, निसोत, दन्तीमूल, शतावर, इन्द्रायणकी जड़, गुल्म, अर्श, और संग्रहणीका नाश होता तथा | भरंगी, देवदारू, अजवायन, कुस्तुम्बरु, धनिया, हृदय, कण्ठ और मुख शुद्र हो जाता है एवं पोखरमूल, बेर और हर समान भाग लेकर चूर्ण अग्नि दीप्त होती है। बनावें और उसे अदरक तथा बिजौ रे नीबूके रसकी (मात्रा-३-४ माशे।) एक एक भावना देकर सुखा लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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