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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायपकरणम् चतुर्थों भागः लघुमधुकादिफाण्ट: पीसकर पीने और अनभिष्यन्दि आहार करनेसे (यो. र. । तृष्णा.) | अपस्मार नष्ट हो जाता है। प्र. सं. ४९९९ " मधुकादि फाण्ट: " (२) (६१९८) लजालुयोगः (२) देखिये। ( यो. त. । त. ७६ ) लघुमाषादिकापः लज्जालुधातकी पुष्पमुत्पलं मधुलोधकम् । (ग. नि. । वाता. २४ ) जलस्थया स्त्रिया पीतं गर्भपातं निवारयेत् ।। प्र. सं. ५०३४ "माषादिकाथः” देखिये ।। पततं स्तम्भयेद्गर्भ कुलालकरमृत्तिका ॥ (६१९६) लघुरास्नादिकाथः (१) । लज्जावन्तीकी जड़, धायके फूल, नीलोफर, | मुलैठी और लोध समान भाग लेकर काथ बनावें। ( हा. सं. । स्था. ३ अ. २) रास्नात्रिकण्टशतपर्वमहौषधैश्च यदि स्त्रो जल में खड़ी हो कर इसे पिये तो __ भार्गीसपुष्करघनसुरदारुधान्यैः।। गिरता हुवा गर्भ रुक जाता है। काथो हितः सकलमारुतजिज्ज्वरेषु ... बरतन बनाते हुवे कुम्हारके हाथोंमें जो मिट्टी स्यात् सन्निपात प्रभवेश्वतिदारुणेषु ॥ | लग जाती है उसे पीनेसे भी गर्भपात रुक जाता है। रास्ना, गोखरु, बांस, सेांठ, भरंगी, पोखर (६१९९) लज्जावत्यादियोगः मूल, नागरमोथा, देवदारु और धनिया समान भाग ___(रा. मा.। स्त्रीरोगा.) लेकर काथ बनावें। लज्जावतीशाल्मलीधातकीभि- यह काथ वातज और अति दारुण सन्निपात नीलाम्बुजक्षौद्रपयोन्विताभिः । ज्वरको नष्ट करता है। पीताभिरन्तर्जलमास्थितायाः लघुरास्नादिक्काथः (२) ____ स्त्रियो न गर्भस्य भवेन्निपातः ॥ (यो. चि. म. । अ. ४ ; वृ. नि. र. । वातव्या.) लज्जावन्तीकी जड़, सेभलकी छाल, धायके प्र. सं. ५८९० " रास्नापञ्चकम्” देखिये। फूल और नील कमलको दूधमें पीस कर शहद ___ (६१९७) लज्जालुयोगः (१) मिला कर जलमें खड़े हो कर पीनेसे गर्भपात रुक (ग. नि. । अपस्मारा.) जाता है। प्रातरौषधकाले तु संपिबेनियमस्थितः। (६२००) लवङ्गादिक्वाथः आजेन पयसा पिष्टां कृताअलिशिफां बुधः॥ (यो. र.; वृ. नि. र. । अजीर्णा. ) अपस्मारविनाशाय निरभिष्यन्दि भोजनम् ॥ लवङ्गपथ्ययोः क्याथः सैन्धवेनावधलितः। प्रातः काल बकरीके दूधर्मे लज्जावन्तीकी जड़ । पीतः प्रशमयत्याशु त्वजीर्ण रेचयत्यपि ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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