SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् चतुर्थों भागः ४५९ गायके दूधमें पांच गुना पानी मिला कर भावितं रजनीचूर्ण स्नुहिक्षीरैः पुनः पुनः । पकावें और जब पानी जल जाए तो उसे ठण्डा | बन्धयेत्सुदृढ मूत्रं छिनत्यर्थी भगन्दरम् ॥ कर लें । यह दूध भी रक्तपित्तको नष्ट करता हल्दीके चूर्णको स्नुही ( सेंड-थोहर ) के है । अथवा दूधकी बहुतसी भावनाएं देकर एक मज़बूत डोर गोदुग्धको विदारीगन्धादि गगके साथ पर उसका लेप करके सुखा लें । पका कर, ठण्डा करके उसमें खांड और शहद अर्शके मस्सों पर यह डोरा कसकर बांध मिला कर पिलाना भी हितकारी है। देनेसे मस्से कट जाते हैं। __ गूलरके पक्के फल, खम्भारीके फल, हरी, (६१७४) रम्भाक्षारसिद्धविलेपी खजूरके फल और मुनक्का को पृथक पृथक् ( इन (रा. मा. । उदररो. ८) मेंसे चाहे जिसे ) पीस कर शहदमें चाटनेसे भी रक्तपित्त नष्ट होता है। वित्राव्य रम्भादलभस्ममध्यात् तोयं ततस्तेन कृता विलेपी। (६१७१) रक्तशाल्यादियोगः स्थाद्भक्षिता सत्युदरामयानां (यो. र. । छर्दि.) नाशाय नूनं दिवसत्रयेण ॥ अथ रक्तशालिभक्तं गोदधिशर्कराविमिश्रं च । केलेके पत्तोंकी राखको एक कपड़ेमें डालकर कुर्याद्भोजनमेतत्कफच्छर्दिच्छिदं जन्तोः॥ उसके चारों कोने किसी धडौंचीके चारों पायों में ___ लाल चावलोंके भातमें गायका दही और बांध दें और उसके नीचे पात्र रखकर कपड़े में खांड मिला कर भोजन करनेसे कफज छर्दि नष्ट ( राखसे ६ गुना ) पानी डाल कर अच्छी तरह होती है। मिला दें। नीचेके पात्र में जो पानी छने उसे पुनः (६१७२) रक्तापामार्गमूलयोगः वस्त्रमें डाल दें। इसी प्रकार कई बार छानें । ( र. र. रसा. खं. । उप. ७) जब पानी स्वच्छ हो जाए तो उसमें चावल पकारक्तापामार्गमूलं तु सोमवारेऽभिमन्त्रयेत् । । भौमे प्रातः समुद्धृत्य बन्धेत्कटयां च वीर्यधृक्।। इसे केवल ३ दिन तक खानेसे उदर रोग लाल अपामार्ग (चिरचिटे ) की जड़को | नष्ट होते हैं। सोमवारके दिन आमन्त्रित करके मंगलवारके दिन प्रातः काल उखाड़ लाएं । इसे कमरमें बांध कर | | (६१७५) रम्भाफलयोगः (१) स्त्रीसमागम करनेसे वीर्यस्तम्भन होता है। ( धन्व.। सोमरोगा.) (६१७३) रजनीचूर्णयोगः कदलीनां फलं पक्वं धात्रीफलरसं मधु । (वृ. नि. र. । अझं.) | शर्करा पयसा पीतमपां धारणमुत्तमम् ॥ कर चिले For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy