SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ४१ इनके सेवनसे रक्तपित्त, खांसी, श्वास, छर्दि, (से. वि.-१-१ गोली मुंहमें रखकर रस अरुचि, मूर्छा, हिचकी, मद, भ्रम, क्षतक्षय, स्वर- चूसें दिन भरमें १२ गोलीसे अधिक न खावें।) भंग, पुरानी वातव्याधि, रक्त थूकना, हृदय और (५१६३) मरिचादिमोदकः पसलीकी पीड़ा, तृष्णा और ज्वरका नाश होता है। ( यो. र. । अर्श.; हा. सं. । स्था. ३ अ. ११; मध्यपानीयभक्तगुटिका वृ. नि. र. । अर्श.) (रसे. चि. म. । अ. ९) मरिचमहौषधाचत्रकसूरणभागा यथोत्तरं द्विगुणाः। प्रयोग संख्या ४३२४ पानीयभक्तवटी सर्वसमो गुडभागः सेव्योऽयं मोदकः प्रसिद्धफलः।। (मध्यम ) देखिये । काली मिरच १ भाग, सोंठ २ भाग, चीता(५१६२) मरिचादिगुटिका | मूल ४ भाग, और जिमीकन्द ( सूरण ) ८ भाग (यो. त. । त. २८; वृ. यो. त.। त. ७८; वै. लेकर सबका महीन चूर्ण बनाकर उसे १५ र.; च. द.; यो. र.; वृ. मा.; भा. प्र.; ग. नि.: भाग गुड़में मिला कर (१-१ तोलेके ) मोदक र. र.; भै. र.; वं. से. । कासा; शा, ध.।। | बनालें। इनके सेवन से अर्श नष्ट होती है। खं. २ अ. ७; वृ. नि. र.। स्वरभेदा.; यो. (५१६४) मरिचादिवटा चि. म. । अ. ३) । कर्षः कषांशपलं पलद्वयं स्यात्ततोऽर्धकर्षश्च । (वृ. नि. र. । अर्श.; धन्व. । अर्श. ) मरिचस्य पिप्पलीनां दाडिमगुडयावशूकानाम् ॥ मार | मरिचं खदिरं सारं गैरिकं ताय॒जं तथा । सपिधैरसाध्या ये कासाः सर्ववैद्यनिर्मुक्ताः । | समभागानि सर्वाणि सूक्ष्मचूर्णीकृतानि च । अपि पूर्य छर्दयतां तेषामिदमौषधं पथ्यम् ॥ कुक्कुरमर्दकरसैस्त्रिदिनं मर्दयेत् दृढम् । | त्रिमाषिका वटी कार्या रक्तजाविनाशिनी ॥ काली मिर्च १। तोला, पीपल १। तोला, ___काली मिर्च, कत्था, गेरु और रसौत समान अनारदाना ५ तोले- गुड़ १० तोले और जवा भाग लेकर सबका महीन चूर्ण बना कर उसे ३ खार ७॥ माशे लेकर गुड़के अतिरिक्त सब | दिन कुकरौंदे के रसमें घोटें और फिर ३-३ चीज़ोंका महीन चूर्ण करके उसे गुड़में मिलाकर माशे की गोलियां बना लें । १-१ माशे की गोलियां बनालें। ___ इन्हें सेवन करनेसे रक्तार्श नष्ट हो जाती है । जिस खांसीको अन्य किसी भी औषधसे | (५१६५) मरिचाद्या गुटिका (१) आराम न होता हो और जिसे वैद्योंने असाध्य ग, नि.) गुटिका, ४) कह दिया हो तथा जिसमें पीप आता हो वह भी मरिच पिप्पली पाठा यवक्षारं सनागरम् । इन गोलियों के उपयोगसे नष्ट हो जाती है। एला पत्रत्वचं पथ्या सैन्धवं चाम्लवेतसम् ॥ xकिसी किसी ग्रन्थमें अनारदाना २॥ तोले लिखा है। मधुना गुटिका ह्येषा कण्ठरोगविनाशिनी॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy