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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थो भागः ४१७ D भाग, स्वर्ण भस्म और चांदी भस्म आधा आधा त्यजेधावत्पूर्वबलं भवेत्पटुतरं तावत्स्त्रियं न । भाग, तथा सीसा भस्म चौथाई भाग लेकर सबको स्पृशेत् ॥ एकत्र मिला कर वासा, काकमाची (मकोय), चीता, । यदि रस खानेसे दाह उत्पन्न हो गई हो तो संभाल, इन्द्रजौ, स्थलपद्म और नीलोत्पलके स्व- शरीर पर शीतल जल डालना और चन्दन तथा रस या काथको पृथक् पृथक् सात सात भावना कपूरका लेप करना, मन्द पवन सेवन करना, देकर १-१ रत्तीकी गोलियां बनावें और उन्हें मिश्री युक्त ताज़ा दही खाना, नारियलका पानी • धूपमें सुखाकर सुरक्षित रक्खें । पीना और मधुर तथा शीतल पदार्थ सेवन करने इनके सेवनसे सर्व दोषज समस्त प्रकारके । एवं अन्य शीतल उपचार करने हितकारी हैं। अन्त्ररोग नष्ट होते हैं। (६०९०) रसविकारशमनोपायः सुहागा, चौलाईकी जड़, मिश्री, मुलैठी और ( यो. र. । रसविकारचिकि.) सफेद चन्दन समोन भाग लेकर चूर्ण बनावें। इसे कांजीके साथ पीनेसे समस्त रसविकार जनितविविधदाहे शीततोयाभिषेको शान्त होते हैं। मलयजघनसारो लेपनं मन्दवातः । तरुणदधिसिताक्तं नारिकेलीफलाम्भो। यदि रसविकारके कारण छर्दि होने लगे तो __ मधुरशिशिरपानं शीतमन्यच्च शस्तम् ॥ ईखका रस पिलाना या कैथके गूदेमें मिश्री मिला कर खिलाना चाहिये । सौभाग्यमेघनादाङ्ग्रिसितामधुकचन्दनम् । तुषोदकेन पातव्यं सर्वस्मिन् रसवैकृते ॥ । रसजन्य दाहमें समस्त शरीर पर जम्बीरीके रसमें घीकुमारके गूदेको पीस कर लेप करना तथा छयों चेक्षुरसो देयः कपित्थं वा सितान्वितम्। पित्तञ्चरको चिकित्सा करनी चाहिये । कुमारीगिललेपश्च सर्वाङ्गेण प्रशस्यते ॥ समस्त रसविकारोंमें इच्छानुसार शीतल रसदाहे भवेत्सर्व पित्तज्वरभिषग्जितम् ॥ जलादि पिलाना और दाडिम (अनार) वृक्षकी कांपल तथा दूब घासकी जड़को आमलेके रसमें सर्वस्मिन् रसवैकृते हि शिशिरं स्वेच्छाम्बु- पीस कर देना चाहिये। पानादिकम् । रसविकार शान्त होने पर जब तक पूर्वदेयं तापशमाय दाडिमतरोरग्राणि दुर्वा शिफाः। वत् बल न आ जाए तब तक स्त्री-समागम न सम्पेष्यामळया ददीत च तदा स्वेच्छावशेन । करना चाहिये । ५३ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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