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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चूर्ण प्रकरणम् ] www.kobatirth.org स्पार्श्वपृष्ठजठरातिविचिकासु पेयं तथा यवरसेन च विविबन्धे ॥ काला नमक ( सञ्चल ), भुनी हुई हींग और सांठ समान भाग लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें 1 चतुर्थी भागः इसे उष्ण जलके साथ सेवन करने से कफवा - तज हृदय पीड़ा, पार्श्व शूल, पृष्ठ शूल और उदर शूल तथा विसूचिकाका नाश होता है । यदि मलावरोध हो तो इसे जौके काथके साथ सेवन करना चाहिये । ( मात्रा - १ ॥ - २ माशे । ) (५९२०) रेणुकादियोगः ( ग. नि. । वन्ध्या. ५ ) रेणुकांरोधसम्मिश्रां लक्ष्मणां परियोजिताम् । गर्भदां क्षीरसर्पिर्भ्यां पिवेद्रतटाङ्करान् ॥ रेणुका, लोध और लक्ष्मणा समान भाग लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें । इसे पीने, चाटने, खाने या अन्नादिमें मिला कर सेवन करनेसे खांसी, हिचकी, ज्वर, श्वास और पार्श्व शूलका नाश होता है । ( मात्रा - ६ माशे । ) रोचनादिचूर्णम् (वं. से. । नेत्र रो. ) मिश्र प्रकरण में देखिये । (५९२२) रोहीतकादियोगः ( यो त । त. ५३; यो. र. । उदररो. ) रोहीतकायाशुण्ठीः पिबेन्मूत्रेण शक्तितः । सर्वोदरहरं लोह मेहारीः कृमिगुल्मनुत् || रुहेड़ा की छाल, हर्र और सोंठ समान भाग लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें । इसे यथोचित मात्रानुसार गोमूत्र के साथ से. वन करने से समस्त प्रकार के उदर, प्लीहा, प्रमेह, अर्श, कृमि और गुल्मका नाश होता है । इति कारादिचूर्ण प्रकरणम् इसे अथवा रक्त बटके अंकुरोंको घृत मिले हुवे दूधके साथ सेवन करनेसे वन्ध्या स्त्री गर्भ धारण कर लेती है । (५९२१) रेणुका चूर्णम् (ग. नि. । चूर्णाधि. ३ ) रेणुश्चोरकं मुस्तं सूक्ष्मैलास ठिनगरम् । स्वमेला पुष्करं शृङ्गी होवेराग रुके सरम् || શું यमान्यामलकीभार्गी पिप्पली सुरसा तथा । सिताचतुर्गुणं चूर्ण तत्पीतं लीढमेव वा ॥ अन्नपानप्रयुक्तं वा भक्षितं वापि केवलम् । का सहिकाज्वरे श्वासपार्श्वशूलं च नाशयेत् ॥ रेणुका, चोरक, नागरमोथा, छोटी इलायची, कचूर, सोंठ, दालचीनी, बड़ी इलायची, पोखरमूल, काकड़ासिंगी, सुगन्ध बाला, अगर, नागकेसर, अजवायन, आमला, भरंगी, पीपल और तुलसी; इनका चूर्ण १-१ भाग तथा मिश्री सबसे चार गुनी ले कर सबको एकत्र मिला लें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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