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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
(रकारादि
वातरोगेषु सर्वेषु कम्पे शोफेऽपतानके । (५८८८) रास्नादिदशमूलम् मन्यास्तम्भे च हृद्रोगे पक्षाघातेऽपतन्त्रके ॥ ( भै. र. । आमवात. ; र. र. । आमवात; अर्दिताक्षेपके कुब्जे हनुग्रहशिरोग्रहे ।
च. द. । आमवाता. २५; वृ. मा.; गृध्रस्यां जानुरोगे च गुल्मे शूले कटिग्रहे ॥
धन्व. । आमवाता.) सामे चैव मिरामे च सप्तधातुगतेऽनिले। । दशमूल्यमृतैरण्डरास्नानागरदारुभिः । आवृतेऽनावृते चैव वातरक्ते विशेषतः ।। क्वाथो रुबुकतैलेन सामं हन्त्यनिलं गुरुम् ॥ एष द्वात्रिंशकः कायः कृष्णात्रेयेण पूजितः ॥ दशमूलको प्रत्येक वस्तु ( शालपणी, पृष्ठ
पर्णी, छोटी और बड़ी कटेली, गोखरु, बेल छाल, रास्ना, गिलोय, देवदारु, अरण्डमूल, हर्र,
सोनापाठाकी छाल, खम्भारीकी छाल, पाढलकी कचूर, खरैटी, अमलतास, सोंठ, सोया, पुनर्नवा,
छाल, अरणी), गिलोय, अरण्डकी जड़, रास्ना, पञ्चमूल (बेलकी छाल, सोनापाठा, खम्भारी,
सोंठ, और देवदारु समान भाग लेकर सबको एकत्र पाढल, अरणी) अतीस, मुण्डी, पियाबासा,
मिला कर अधकुटा कर लें। धमासा, अजवायन, पोखरमूल, असगन्ध, प्रसारणी,
(यह चूर्ण २॥ तोले । पाकार्थ जल २० गोखरु, वासा, विधारा, हपुषा, शतावर, मजीठ,
तोले । शेष क्वाथ ५ तोले । ) गूगल और शिलाजीत समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
इस क्वाथमें अरण्डीका तेल मिला कर पीनेसे
आमवात नष्ट होता है। यह सर्वाङ्ग वायु, आमवात, सन्धिगत, अस्थिगत और मज्जागत वायु, कम्प, शोथ, अपतानक, मन्यास्तम्भ, (५८८९) रास्नाबादशककषायः हृद्रोग, पक्षाघात, अपतन्त्रक, अर्दित, आक्षेपक, (यो. र.; वृ. नि. र. । आमवात.) कुजता, हनुग्रह, शिरोग्रह, गृध्रसी, जानु रोग, | रास्ना शतावरी वासा गुडूच्यतिविषाऽभया । गुल्म, शूल, कटिग्रह, तथा साम और निराम सप्त
शुण्ठीदुरालभैरण्डदेवदारुवचाधनैः ।। धातु गत वायु एवं विशेषतः वातरक्तको नष्ट
क्वाथः पीतो जयत्याशु आमवात सुदारुणम् । करता है।
कटयुरुत्रिकजवाघ्रिगुल्फजानुसमाश्रितम् ॥ (सब ओषधियां समान भाग लेकर अधकुटा
रास्ना, शतावर, बासा, गिलोय, अतीस, हर्र, कर लें। यह चूर्ण २॥ तोले । पाकार्थ जल २० | सोंठ, धमासा, अरण्डकी जड़, देवदारु, बच और तोले । शेष क्वाथ ५ तोले । गूगल और शिला- नागरमोथा; सब चीजें समान भाग ले कर सबको जीत क्वाथ तैयार होने पर मिलानी चाहिये ।) । अधकुटा कर लें।
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