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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रास्नामृतानागरवातशत्रु कटकटेरीजनितः कषायः । एरण्डतैलेन समन्वितोयं भेत्ता भवेदामसमीरणस्य ॥ कषायप्रकरणम् ] (५८८०) रास्नादिक्वाथः (१४) ( वृ. नि. र. । हिक्का . ) चतुर्थी भागः रास्ना, गिलोय, सोंठ, अरण्ड मूल और दारुहल्दी समान भाग ले कर काथ बनावें । इसमें अरण्डीका तेल मिला कर पीने से आम - वातका नाश होता है । ( प्रत्येक ओषधि ६ माशे । पाकार्थ जल २० तोले । शेष काथ ५ तोले । ) (५८८१) रास्नादिक्वाथ: (१५) ( वृ. नि. र. | हिक्का . ) रास्नामरदारुराजवृक्ष त्रिकवैण्ड पुनर्नवामृतानाम् । Fari जलमामवात एषां शमयेनागर कल्कमिश्रमाशु ॥ रास्ना, देवदारु, अमलतास, सोंठ, मिर्च, पीपल, अरण्डकी जड़, पुनर्नवा और गिलोय समान भाग ले कर काथ बनावें । इसमें सांठका कल्क मिला कर सेवन करने से आमवात शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। (५८८२) रास्नादिक्वाथः (१६) ( धन्व. | आमवाता. ) रास्नापुनर्नवा शुण्ठी गुडूच्येरण्डकं शृतम् । सप्तधातुगते वाते सामे सर्वाङ्गगे पिवेत् ॥ ४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२९ रास्ना, पुनर्नवा, सांठ, गिलोय और अरण्डकी जड़ समान भाग ले कर काथ बनावें । यह काथ सप्त धातु और सर्वाङ्गगत आमवाaat ष्ट करता है । ( प्रत्येक ओषधि ६ माशे । पाकार्थ जल २० तोले । शेष क्वाथ ५ तोले । ) (५८८३) रास्नादिक्वाथः (१७) ( वृ. मा. । वाता. ) रास्नायुक्पश्ञ्चमूलमिशिवरुण बलामेघपथ्यायवानी - शुण्ठीपाठाजमोदासहचरा हपुषाभङ्गुरावाजिगन्धाः । आभावृश्चीव सोग्राविषममृतशठी सारणी वृद्धदारु रास्नाशम्पाककषायैः शतावरी पौष्करैरण्डव्यैः ॥ एतत्सर्वं समां विधिव क्वथितं मुष्टिमात्रं जलेन चूर्ण चाभादिमस्मिन्प्रपिवतिमनुजो गुग्गुलुं वा तथैव । आम पक्षाभिघातं हनुगतपवनं चार्दितं जानुशूलं कार्तिकफपवन जो हन्ति सन्ध्यस्थिसंस्थाः || रास्ना, दशमूल, सौंफ, बरनेकी छाल, बला (खरैटी), नागरमोथा, हर्र, अजवायन, सोंठ, पाठा, अजमोद, पियाबासा, हपुषा, भरंगी, असगन्ध, कीकरकी छाल, पुनर्नवा, बच, अतीस, गिलोय, For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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