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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कषायप्रकरणम् ] www.kobatirth.org ( रा. मा. । स्त्री रोगा. ३०) क्षीरे स्थित लोहितशालिपिष्टं सुशीतलं माक्षिकसंयुतं च । पीतं निहन्ति प्रदरामयोत्थामतिप्रवृत्तामसृजः प्रवृत्तिम् ॥ चतुर्थी भागः अथ रकारादिकषायप्रकरणम् (५८५१) रक्तनारिकेलजलयोगः ( वृ. नि. र. । मूत्रकृच्छ्र. ) रक्तस्य नारिकेलस्य जलं कतकसंयुतम् । शर्करैला समायुक्तं मूत्रकृच्छ्रहरं विदुः ॥ लाल नारियल पानीमें इलायची और निर्मलीके फलका चूर्ण तथा खांडु (मिश्री) मिला कर पीने से मूत्रकृच्छ्र नष्ट होता है । ( चूर्णकी मात्रा - २ माशे । ) (५८५२) रक्तशालिपिष्टयोगः (५८५३) रजन्यादिक्वाथः ( यो. चि. म. । अ. ४ ) हरिद्रास्तभूनिम्बत्रिफलारिष्टवासकम् । कण्टकारीद्वयं भार्ती कटुकं नागरं कणा ॥ ૪૧ लाल चावलेjको दूध में भिगो दें और जब वे अच्छी तरह फूल जाएं तो उन्हें पीस लें। इसमें शहद मिला कर पीनेसे रक्त प्रदर सम्बन्धी प्रबल रक्तस्राव भी बन्द हो जाता है । र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२१ पटलं पर्पटं शृङ्गी देवदारु सरोहिषम् । विविकं बला बिल् कुम्भकारी हरीतकी ॥ कट्फलं कुटजं श्यामा सर्वमेकैकभागिकम् । रास्नाभागद्वयं चात्र दत्त्वा क्वाथं च साधयेत् ॥ व्योषचूर्णयुतः क्वाथो ज्वरं हन्ति त्रिदोषजम् । त्रयोदश महाघोरान् अन्धकारान्यथा रविः ।। वमिः स्वेदो प्रलापं च स्तैमित्यं शीतगात्रता । मोहतन्द्रातृवाश्वासकासदाहानिमन्दहा || हृत्पार्श्वशूल विष्टम्भं कण्ठकुब्जत्रिकं तथा । जिह्वास्फुटनकं कर्णशूलं चाशु विनाशयेत् ॥ नातः परतरं किञ्चिदौषधं सन्निपातजित् । रजन्यादि गणो ह्येष धन्वन्तरिविनिर्मितः ॥ हल्दी, नागरमोथा, चिरायता, हर्र, बहेड़ा, आमला, नीमकी छाल, बासा, कटेळी, कटेला ( बड़ी कटेली), भरंगी, कुटकी, सोंठ, पीपल, पटोल, पित्तपापड़ा, काकड़ासिंगी, देवदारु, गन्धतृण, जवासा, बला, बेलकी छाल, बनकुलथी, हर्र, कायफल, कुड़ेकी छाल, और निसोत १ - १ भाग तथा रास्ना २ भाग ले कर सबको एकत्र करके अकुटा कर ले 1 For Private And Personal Use Only ( इसमें से २ तोले चूर्ण को १६ तोळे पानी में पकावें और ४ तोले पानी शेष रहने पर छान लें। )
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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