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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः (५७८८) यवादिघृतम् (१) जौ, बेरका गदा और कुल्थीके कल्क तथा | पञ्चमूलके कपाय और सुरा एवं सौबीरक कांजीके (र. र. । प्रसूति.) साथ घृत सिद्ध कर लें। यवकोलकुलत्थानां शालिमूलं तथैव च । यह घृत उदर रोग नाशक है। क्वाथयेदप्रमत्तश्च सुपूते सलिलाढके ॥ (५७९०) यवादिघृतम् (३) तत्पादावस्थितं क्वाथं सर्पिर्युक्तं सजीरकम् । ( वृ. नि. र. । अश्मरी.) पक्वं घृताक्षमात्रेण सैन्धवेन समायुतम् ॥ यवकोलकुलित्थानि कतकस्य फलानि च । एतेनैव च यूषेण चाश्नीयाच्छालिषष्टिकम् । ' चतुर्थाशकषायेण पाच्यमेतच्छृतं घृतम् ॥ सूतिकोपद्रवं हन्ति भुक्तमात्रान संशयः ॥ ____ जौ, बेरका गूदा, कुलथी और निर्मलीके बीज जौ, बेरका गूदा, कुलथी और शाली धानकी | १-१ सेर लेकर सबको एकत्र कूट कर ३२ सेर जड समान भाग मिश्रित १ सेर लेकर सबको कूट पानी में पकावें और जब ८ सेर पानी शेष रहे तो कर ८ सेर पानीमें पकावें । जब २ सेर काथ शेष छान लें। रह जाय तो छान लें। ___ इसमें २ सेर धी मिला कर पकावें । जब पानी अब इस काथमें आधा सेर घी और ५ तोले जल जाए तो धीको छान लें। जी रका कल्क तथा १। तोला सेंधा नमक मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो यह घृत पथरीको नष्ट करता है। घीको छान लें। (५७९१) यष्टीमधुकादिघृतम् इसे शाली अथवा साठी चावलोंके भातमें (हा. सं. । स्था. ३ कर्ण रोगा. ७४ अ.) डाल कर वह भात उपरोक्त द्रव्योंके यूषके साथ यष्टीमधुकुष्ठमरिष्टपत्रं सेवन करना चाहिये । निशाविशालासुमनः प्रवाला। इसके सेवनसे सूतिका रोग तुरन्त शान्त हो | विपाचितं कर्णभवे च शूले जाता है। सपैत्तिके वा घृतमेव शस्तम् ॥ कल्क--मुलैठी, कूठ, नीमके पत्ते, हल्दी, (५७८९) यवादिघृतम् (२) इन्द्रायणकी जड़ और जाती (जाई) के पत्ते २॥(च. सं. । चि. अ. १८.) २॥ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । यवकोलकुलत्थानां पञ्चमूलरसेन च ।। काथ-उपरोक्त कल्क वाली ओषधियां आधा मुराप्तौवीरकाभ्यां च सिद्धं वापि पिवेद् घृतम्।।' आधा सेर (मिलित ३ सेर ) लेकर सबको कूट For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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