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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः · [यकारादि पार्श्वशूल, विबन्ध, अफारा, खांसी, श्वास, ग्रहणी | अजवायन, जीरा, कलौंजी, चव, पीपल और और अर्शको नष्ट करता है तथा ग्राही है। सोंठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। ___ (५७५८) यवानीचूर्णम् यह चूर्ण कफज संग्रहणीको नष्ट करता है। (वृ. नि. र. । अर्श; धन्व. । अतिसार.) अनुपान-तक । यवानीन्द्रयवं पाठा बिल्वं शुण्ठी रसाधनम् । (मात्रा-१-१॥ माशा ।) चूर्ण शूले हितं पेयं प्रवृद्धे चातिशोणिते ॥ (५७६१) यवान्यादिचूर्णम् (३) ___ अजवायन, इन्द्रजौ, पाठा, बेलगिरी, सोंठ । (हारीत संहिता । स्था. ३ अ. २९) और रसौत समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । यवानी चोग्रगन्धा च तथा च कटुकत्रयम् । ____ यह चूर्ण शूलयुक्त अत्यन्त प्रवृद्ध रक्ताति- पाचनं श्लैष्मिके गुल्मे पीतं चोष्णं निशासु च ॥ सारको नष्ट करता है। अजवायन, बच, सेांठ, मिर्च और पीपल ( मात्रा-१॥ माशा । अनुपान-चावलोंका | समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । पानी।) __ इसे रात्रिके समय सेवन करनेसे कफज गुल्म (५७५९) यवान्यादिचूर्णम् (१) . नष्ट होता है। ( वृ. नि. र. । शूल.) (मात्रा-१-१॥ माशा । अनुपान-उष्ण जल ।) यवानी सैन्धवं दारु यवक्षारं सुवर्चलम् । (५७६२) यवान्यादिचूर्णम् (४) विश्वैरण्डशिफा हिङ्गुलवणं बिडपूर्वकम् ॥ (वृ. नि. र. । संग्रहण्य.) एतच्चूर्ण समं श्लक्ष्णं गुडूचीक्वाथपानतः । यवानीपिप्पलीमूलं चातुर्जातकनागरैः। . सर्वशूलानि नश्यन्ति महारोगान्न संशयः ।। धातकोतिन्तडी कृष्णा बालकश्चैकभागिकः ॥ अजवायन, सेंधा नमक, देवदारु, जवाखार, | सितापटभागसंयुक्तं सर्वचूर्ण प्रकल्पयेत् । सञ्चल ( काला नमक ), सोंठ, अरण्डमूल, भुनी | ककं भक्षयेन्नित्यमजाक्षीरं पिबेदन ॥ हुई हींग और बिड नमक समान भाग ले कर नाशयेद् ग्रहणीरोग पित्तोत्थं सपवाहिकम् ॥ बारीक चूर्ण बनावें । ___अजवायन, पीपलामूल, दालचीनी, तेजपात, इसे गिलोयके काथके साथ सेवन करनेसे करनेसे | इलायची, नागकेसर, सोंठ, धायके फूल, तिन्तडीक, समस्त प्रकारके शूल नष्ट होते हैं। पीपल और सुगन्धबाला १-१ भाग तथा मिसरी (मात्रा-१-१॥ माशा।) ६ भाग ले कर यथाविधि चूर्ण बनावें। (५७६०) यवान्यादिचूर्णम् (२) इसे नित्य १। तोलेकी मात्रानुसार बकरीके (ग. नि. । ग्रहणी.) दूधके साथ सेवन करनेसे पित्तज ग्रहणी और यवान्यजाजीकारव्यश्चव्यपिप्पलिनागरम्। प्रवाहिकाका नाश होता है । प्रलेष्मजां ग्रहणी इन्ति पीतं तक्रेण संयुतम् ॥ ( व्यवहारिक मात्रा-२ माशे।) For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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