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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] चतुर्थो भागः २६३ - मेथी १ सेर; शतावर १० तोले; तथा दाल- गुल्मं प्लीहामयं हिकां शूलकुक्ष्यामयं तथा । चीनी, तेजपात, चीतामूल, सेठ, जीरा, पीपल, उदावत महावातं कर्फ मन्दानलं तथा ॥ द्राक्षा, हर्र, गोखरु, आमला, गजपीपल, फूल- सादिकं विषं घोरं व्रणं लूता भगन्दरम् । प्रियंगु, मूसली और कौंचके बीज ५-५ तोले । विद्रधि चान्त्रवृद्धिं च शिरस्तोदं च नाशयेत् ॥ सबका महीन चूर्ण ले कर उसे उससे ४ गुने १५-१५ तोले लोह भस्म और ताम्र भस्म ( ८ गुने ) दूध मन्दाग्नि पर पकावें । जब खोवा एकत्र मिला कर उसे भंगरेके रस, गोमूत्र और हो जाय तो उसे गायके धीमें भूनकर ठंडा । त्रिफलाके क्वाथकी ३-३ भावना दें। और फिर करके सबसे २ गुनी खांडकी चाशनीमें मिला उसे ४ पहर तक खट्टी कांजीमें पकावें । तदनन्तर कर उसमें निम्न लिखित द्रव्योंका प्रक्षेप दें।। उसमें उसके बराबर शुद्ध गन्धक मिला कर खरल प्रक्षेप द्रव्य-छोटी और बड़ी इलायची, करें और शरावसम्पुटमें बन्द करके (लघुपुटमें) पिस्ता, लौंग, खजूर, ( छुवारा ), बादामकी गिरो फूंक दें । इसी प्रकार बार बार गन्धक डाल कर और जावत्रीका चूर्ण तथा बंग और अभ्रक भस्म २० पुट दें। तत्पश्चात् उसमें ५ तोले पारद २॥-२॥ तोले । सबका महीन चूर्ण उपरोक्त पाकमें भस्म और सम्पूर्ण औषधको ग्यारहवां भाग शुद्ध मिला कर मोदक बनावें । बछनागका चूर्ण एवं सबके बराबर त्रिकुटेका चूर्ण _इन्हें अग्नि बलोचित मात्रानुसार सेवन कर मिला कर खरल करके रक्खें । नेसे वृद्ध पुरुष भी युवाके समान स्त्री समागम कर इसे सेवन करनेसे कुष्ठ, श्वित्र कुष्ठ, गुल्म, सकता है। तिल्ली, हिक्का (हिचकी ), शूल, कुक्षिगत रोग, (५६७१) मेदिनीसाररसः उदावर्त, महावात, कफ, अग्निमांद्य, सर्पादि का (र. र. स. । अ. २०) भयंकर विष, व्रण, लूता (मकड़ी) का विष, भगपलत्रयं मृतं लोहं मृतं शुल्वं पलत्रयम् ।। न्दर, विद्रधि, अन्त्रवृद्धि और शिरशूलका नाश भृङ्गराजाम्बुगोमूत्रत्रिफलाकथितैः पृथक् ॥ होता है। पुटेत्रिवारं यत्नेन ततस्तस्मिन्विनिक्षिपेत् । मात्रा--३ रत्ती। अत्यम्लकाधिकं पश्चात्पद्यामचतुष्टयम् ॥ अनुपान--त्रिकुटे ( सोंठ, मिर्च, पीपल ) ततश्च तुल्यगन्धेन पुटानां विंशति पचेत् । का चूर्ण और घी। पलमात्रं मृतं सूतं रुद्रांशममृत तथा ॥ कटुत्रयं समं सर्वैः पिष्टवा सम्यग्विधारयेत् । (५६७२) मेदोहररसः रसोयं मेदिनीसारो नन्दिना परिकीर्तितः ॥ ( र. का. धे. । मेदो.) सेवितोवल्लमानेन घृतत्रिकटुकान्वितः । मूतः समांशात् सबलिः सवेल्लः हन्ति कुष्ठानि सर्वाणि श्वित्राणि विविधानि च सूर्याम्बुघृष्टोऽस्य च वल्ल एकः। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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