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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ मकारादि शृतकषायवरान् ज्वरमस्य ते नागरमोथा, बासा (अडूसा), देवदारु, कूठ, व्यपनयन्त्यनलं च वितन्वते ॥ कटेली, सेठ, काकजंघा, मुनक्का, गिलोय और नागरमोथा, जबासा, सुगन्धबाला, कुटकी पीपल समानभाग लेकर क्वाथ बनावें। और सेंठि इनका क्वाथ पीनेसे ज्वर नष्ट होता यह क्वाथ वातवरको नष्ट करता है । और अग्नि दीप्त होती है। (५०५१) मुस्तादिकाथः (५) (५०४८) मुस्तादिकाथः (२) ( हा. सं. स्था. ३ अ. २) (हा. सं. स्था. ३ अ. ३१; भै. र. प्रमेहा.) मुस्ता फलत्रिकनिशा सुरदारु मूर्वा मुस्ता गुडूची सहनागरेण ऐन्द्री च लोधसलिलेन कृतः कषायः । _वासाजलं पर्पटकं च पथ्या । पाने हितः सकलमेहभवे गदे च क्षुद्रा च दुःस्पर्शयुतः कषायः ।। __ मृत्रग्रहेषु सकलेषु नियोजनीयः॥ पाने हितो वातकफज्वरस्य ॥ नागरमोथा, हर्र, बहेड़ा, आमला, हल्दी, नागरमोथा, गिलोय, साँठ, बासा (अडूसा), देवदारु, मूर्वा, इन्द्रायण की जड़ और लोध। पित्तपापड़ा, हर्र, कटेली और धमासा । इनका क्याथ पीनेसे समस्त प्रकारके प्रमेह इनका काथ वातकफ-ज्वरको नष्ट करता है। और मूत्राघात नष्ट होते हैं। (५०५२) मुस्तादिकाथः (६) (५०४९) मुस्तादिकाथः (३) (भा. प्र. म. खं.; वृ. नि. र. सन्निपाता. ) (ग. नि. ज्वरा.) मुस्तमारग्वधोशीरं हरिद्रा दारुसाहयम् । मुस्तैरण्डमाणदावाणेदारुपटोलपिचुमन्दौ च यष्टीमधुकमेव च ॥ च्छिमारास्नाभीरुकचूरतिक्ताः। कषायः एषः सिद्धः स्याद्वातपित्तोद्भवे ज्वरे । वासाविश्वापञ्चमूलाऽश्वगन्धा नागरमोथा, अमलतास, खस, हल्दी, देव- हन्युमन्यास्तम्भसन्धिग्रहाः॥ दारु, पटोल, नीमकी छाल और मुलैठी। नागरमोथा, अरण्डमूल, हर्र, पियाबासा, देवइनका क्वाथ वातपित्तज्वरको नष्ट करता है। दारु, ।गलोय, रास्ना, शतावर, कचूर, कुटकी, (५०५०) मुस्तादिक्काथः (४) बासा (अडूसा), साठ, पञ्चमूल (बेलकी छाल, (ग. नि. ज्वरा.) सोनापाठाकी छाल, खम्भारीकी छाल, पाढलकी मुस्ताऽऽटरूषः सुरदारु कुष्ठं छाल, अरणी) और असगन्ध समानभाग लेकर निदिग्धिकानागरकाकजङ्घाः। क्वाथ बनावें । द्राक्षामृतापिप्पलिकाकपायं यह क्वाथ सन्निपात ज्वर, मन्यास्तम्भ और पिबेच्च वातज्वरयुक्तजन्तुः ॥ सन्धिग्रहको नष्ट करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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