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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७४ इसे १ । माशे की मात्रानुसार पीपल के चूर्ण और शहद के साथ सेवन करने से पुराना पाण्डु नष्ट हो जाता और नवीन रक्तको वृद्धि होती है । भारत - भषज्य रत्नाकरः इसका प्रभाव अचिन्त्य है और यह अनुपान भेदसे अनेकों रोगोंको नष्ट करता है । ( पञ्चामृत - गोखरु, मुण्डी, मूसली, गिलोय और शतावर । सब समान भाग ले कर कूट लें | ) एकत्र (५५०५) मधुयष्ट्यादिचूर्णम् ( नपु. मृ. । त. ३) मधुयष्टी तुगाक्षीरी धात्री गोक्षुरकं तथा । म कपिबीजं धात्रीरस विभावितम् ॥ भक्षयेन्मधुसर्पिभ्यां ततश्चानुपयः पिवेत् । वीर्यवृद्धिकरं पुंसां क्लीवत्वनाशनं परम् ॥ मुलैठी, बंसलोचन, आमला, गोखरू और कौंच बीज | इनका चूर्ण तथा बंग भस्म और अभ्रक भस्म समान भाग ले कर सबको एकत्र घोट कर उसे आमले के रस की भावना दें । इसे शहद और घी में मिला कर चाटने और ऊपरसे दूध पीने से वीर्य वृद्धि होती और नपुंसक - ताका नाश होता है । ( मात्रा - १ माशा ) (५५०६) मध्यमकस्तूरी भैरवरसः ( धन्व. । उवर.; र. रा. सु. । ज्वरा . ) मृतं वङ्गं खर्परं च हिरण्यं तारतालकम् । एतेषां समभागेन कर्षमेकं पृथक्पृथक || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | मृतं कान्तं पलं देयं हेमसारं द्विकार्तिकम् । रसभस्म लवङ्गं च जातिकाफलमेव च ॥ वक्ष्यमाणौषधैर्भाव्यं प्रत्येकं दिनसप्तकम् । द्विश्चन्द्रं त्रिकटुर्देयो यत्नतो टिकां चरेत् । द्रोणपुष्पी सैर्वापि नागवल्या रसेन च ॥ वातात्मके सन्निपाते महाश्लेष्म गदेषु च ॥ त्रिदोषजनिते घोरे सन्निपातातिदारुणे । नष्ट नष्टशुक्रे मेहे विषमज्वरे ॥ कासे श्वासे क्षये गुल्मे महाशोथे महागदे । स्त्रीणां शतं गच्छति च न च शुक्रक्षयो भवेत् ॥ एतान् सर्वान् निहन्त्याशु भास्करस्तिमिरं यथा ।। बंग भस्म, शुद्ध खपरिया, स्वर्ण भस्म, चांदी भस्म और हरताल भस्म ११ - १ | तोला, कान्त लोह भम्म ५ तोले, स्वर्णमाक्षिक भस्म २ ॥ तोले, तथा पारद भस्म, लौंगका चूर्ण, और जायफलका चूर्ण २॥ २॥ तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर सा सात दिन गूमा और पानके रसमें पृथक् पृथक् खरल करें और फिर उसमें २|| तोले कपूर तथा २|| तो त्रिकटु ( सोंठ, मिर्च, पीपल) का चूर्ण मिला कर गोलियां बना लें । " [ मकारादि t ये गोलियां वातप्रधान सन्निपात, कफज रोग, भयंकर सन्निपात, गर्भ विनाश, शुक्र क्षय, प्रमेह, विषम ज्वर, खांसी, श्वास, क्षय, गुल्म, और दुस्साध्य शोथ को नष्ट करके काम शक्ति को बढ़ाती हैं । For Private And Personal Use Only मध्यमद्रावकरसः ( भै. र. ) द्रावकरस: ( मध्यम ) " देखिये ।
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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