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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चतुर्थी भागः रसमकरणम् ] नोट-चूर्ण योग्य चीज़ोंका पृथक् पृथक् चूर्ण लेकर तोलना चाहिये और पारे गन्धककी कज्जली बना कर उसमें समस्त ओषधियां मिला कर अच्छी तरह घोटना चाहिये । इसमें से नित्य प्रति १। तोला चूर्ण घी और शहद के साथ सेवन करने तथा ऊपरसे शीतल दुग्धपान करने से कामशक्तिकी अत्यन्त वृद्धि होती है । इसके प्रभाव से वीर्य हीन, व्याधिपीड़ित, प्रमेही, मूत्रकृच्छ्री, और अस्सी वर्षका वृद्ध पुरुष भी युवाके समान स्त्री-समागम कर सकता है । स्त्री दोषसे उत्पन्न हुई क्लीवता भी इसके सेवन से नष्ट हो जाती है । यदि इसे स्त्री सेवन करे तो वह वीर, स्वस्थ और दीर्घजीवी पुत्रको जन्म देती है । .1 इस चूर्णकी विद्यमानतामें अन्य सैकड़ों पौष्टिक औषधे बिल्कुल व्यर्थ हो जाती हैं । केवल एक इसी प्रयोगके सेवन से शरीर दिनों दिन इस प्रकार पुष्ट होने लगता है जैसे पानी से नवीन शस्य । यदि इसे ४० दिन तक सेवन किया जाय तो पुरुष एक सौ स्त्रियोंके साथ रमण करनेमें समर्थ हो सकता है । ( व्यवहारिक मात्रा - ६ माशे । ) (५४९५) मदनसुन्दररसः (१) ( र. र. । बाजीकर,; धन्व. | वाजीकरण . ) माक्षिकं धातुमाक्षिकं च लौहचूर्ण शिलाजतु । पारदं च विर्ड चैव गन्धकञ्च समं समम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६७ ;; घृतेन भावयित्वा तु पात्रे कृत्वा तु चायसे । विडालपदमात्रन्तु भक्षयेच्च पुनः पुनः ॥ मासमात्रं पिवेन्नित्यं वीर्यवृद्धयै दिने दिने । सपुमान् रमयेन्नारीमजस्रं चटको यथा ॥ स्वर्णमाक्षिक भस्म, रौप्यमाक्षिक भस्म, लोह चूर्ण ( भस्म ), शिलाजीत, शुद्धं पारद, बायबिढंगका चूर्ण और शुद्ध गन्धक समान भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधें मिला कर उसे लोहे के खरलमें डाल कर घीके साथ मर्दन करें । इसे १ | तोले की मात्रानुसार १ मास तक सेवन करने से कामशक्ति अत्यन्त तीव्र हो जाती है। (५४९६) मदनसुन्दर रस: (२) ( र. र. स. । उ. खं. अ. २७ ) गन्धकेन रसः पिष्टः कल्हाररसमर्दितः । विपक्वो वालुकायन्त्रे दृष्यो मदनसुन्दरः ॥ शुद्ध पारद और गन्धक की कज्जलीको कुमुद स्वरसमें घोटकर ( रस सिन्दूर की भांति ) वालुका यन्त्र में पकावें । यह रस वृष्य ( मन को प्रहर्षित और कामो(तेजन करने वाला ) है | (५४९७) मदनाङ्कुशटङ्कणरसः (र. का. . । स्वरभेदा. ३६ ) टङ्कणात तृतीयांशं सैन्धवं लवणं न्यसेत् पञ्चमांश सोममलं पशं हरितालकम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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