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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] चतुर्थों भाग - (१३-१४) जातीफलकल्कलेपो नीलिव्यङ्गादिनाशनः । ___बकरीके दूधमें बरनेकी छालको पीसकर लेप सायं च कटुतैलेनाभ्यङ्गो वक्तप्रसादनः ॥ | करनेसे व्यङ्ग (मुखकी झाई) का नाश होता है । (४) ( चरक; र. र. । क्षुद्ररो.) सेमलके तीक्ष्ण कांटोंको दूधमें पीसकर लेप (१५-१६) करनेसे ३ दिनमें ही मुख कमलके समान सुन्दर लोध्रधान्यवचालेपस्तारुण्यपिडकापहः । | हो जाता है। तद्वद्गोरोचनायुक्तं मरिचं मुखलेपतः ॥ ___ सफेद पुनर्नवाकी जड़ तथा सर्पाक्षीकी जड़को सिद्धार्थकवचालोधसैन्धवैश्च प्रलेपनम् । पीस कर मलनेसे स्त्रियोंकी अक्षिच्छाया (आंखोंके वमनं च निहन्त्याशु पिडकां यौवनोद्भवाम् ॥ पासको कलौंस ) नष्ट होती है। (१८-२०) व्यङ्गेषु चार्जुनत्वग्वा मञ्जिष्ठा वा समाक्षिका । सुरमे और लाल चन्दनके समान-भागलेपः सनवनीता वा श्वेताश्वखुरजा मसी ॥ मिश्रित चूर्णको भैसके दूधमें पीसकर लेप करनेसे (२१) गण्डस्थित मक्षिका (चेहरेके मस्सों ) का नाश रक्तचन्दनमजिष्ठालोध्रकुष्ठप्रियङ्गवः ।। होता है। वटाङ्कुरमसूराश्च व्यङ्गना मुखकान्तिदाः ॥ (७) ___ फूल प्रियङ्गु, केसर, बेरकी गुठलीके भीतरकी सोनामक्खी, हरताल, नीला थोथा, राजावर्त, गिरी, सुगन्धवाला और लाल चन्दनके समानशिलाजीत और भैंसिया गूगल समान भाग लेकर भाग-मिश्रित-चूर्णको ( पानी या दूधमें ) पीस सबको भैसके दूधमें महीन पीसकर मुखपर अच्छी | कर लेप करनेसे मुखकान्ति चन्द्रमासे भी उज्ज्वल हो जाती है। तरह मलनेसे एक सप्ताहमें व्यङ्ग (झांई) और तिल, कालक आदिका नाश हो कर मुखकी कान्ति बढ़ती है। दारु हल्दी, नीलोत्पल, कूठ, दहीकी मलाई, बेरकी गुठलीके भीतरकी गिरी और फूल प्रियंगु अनारकी ताजी छालको पीसकर शहदमें | समान-भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें। मिलाकर लेप करनेसे व्यङ्ग ( चेहरेकी झांई ) का सात दिन तक निरन्तर इसका लेप करनेसे नाश होता है। मुख चन्द्रमाके समान दीप्तिमान हो जाता है। (१) For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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