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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः १२२ कल्क - खरैटी की जड़, चीतामूल, सैंधानमक, पीपल, अतीस, रास्ना, चव, अगर, चीतामूल, ( पाठ भेदके अनुसार सहजने की जड़ ), भिलावा, बच, कूठ, गोखरु, सोंठ, पोखरमूल, कचूर, बेलकी छाल, सोया, तगर और देवदारु । प्रत्येक २ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । ४ सेर तिलके तेल में ४ सेर मूलीका रस, ४ सेर गोदुग्ध, ४ सेर खट्टी दही, ४ सेर कांजी और ऊपर लिखित कल्क मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको छान लें । इसे पीने से अत्यन्त प्रबल वातव्याधियां भी नष्ट हो जाती हैं । 1 (५३२१) मूलकाद्यं तैलम् (२) ( व. से. । वातत्र्या. ग. नि. । तैला. २ ) वातमूलकमापीडय तैलं दध्याम्लकाञ्जिकम् । क्षीराढकं दद्यात्पचेत्कल्कैः पलोन्मितैः ॥ रास्नाभल्लातकं शिग्रु सैन्धवं गजपिप्पली । Namrataaorat furपली चित्रकं वचा ॥ श्वदंष्ट्रा चेति तत्पक्वं वातश्लेष्मामयापहम् । वध्मगृध्रसीपङ्गुत्वं खयं वै सापतानकम् ॥ कटयुरुस्तम्भनं शोषं पर्वस्तम्भप्रकम्पनम् । हन्याद्गुल्मञ्च वातोत्थं बलवर्णाग्निवर्धनम् ॥ वन्ध्यानां पुत्रदञ्चैव तैलं मूलकसाइयम् ॥ द्रव पदार्थ - छोटी (कच्ची मूलीका स्वरस ८ सेर, खट्टा दही ८ सेर, कांजी ८ सेर और दूध ८ सेर । कल्क - रास्ना, भिलावा, सहजनेकी छाल, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ मकारादि " सेंधानमक, गजपीपल, खरैटी, अतिबला (कंधी), सौंठ, पीपल, चीतामूल, बच और गोखरू । प्रत्येक । ५- ५ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । ८ सेर तेल में उपरोक्त द्रव पदार्थ तथा कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको छान ले I यह तेल वातकफज रोगोंको नष्ट करता है 1 इसकी मालिशसे वध्म, गृध्रसी, पंगुतो, खञ्जता, अपतानक, कटिस्तम्भ, उरुस्तम्भ, शोष, सन्ध्यस्तम्भ, प्रकम्पन और वातज गुल्म नष्ट होता तथा वर्ण और अग्निकी वृद्धि होती है । इसके प्रभावसे वन्ध्या स्त्रीको पुत्र प्राप्त हो सकता है। (५३२२) मृणाला दितैलम् ( रा. मा. । स्त्रीरो; यो त । त. ७६. ) मृणालपद्मोत्पलबीजयुक्तं तैलं तथोशीरयुतं विपकम् । पच्छिलयशैथिल्यवि गन्धतादि नाशं करोति स्मरमन्दिरस्य ॥ मृणाल (कमल नाल), पद्म, कमलगट्टा और खसके कल्क तथा क्वाथसे सिद्ध तैल योनिकी पिच्छिलता (चिपचिपाहट), शिथिलता और दुर्गन्धी करता है 1 ककार्थ - प्रत्येक वस्तु २|| तो FETT - प्रत्येक वस्तु आधा सेर । पाकार्थ 1 जल १६ सेर | शेष क्वाथ ४ सेर । तेल १ सेर । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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