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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४३२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि गोमूत्रे पाचयेद्वैधो लौहकिट्टाचतुर्गुणे । । (४३०१) पञ्चामृतवटी पौनर्नवाष्टगुणितं कार्य तत्र प्रदापयेत् ॥ (र. सा. सं.; र. र.; र. रा. सु. । अजीर्ण.) सिद्धेऽवतारिते चूर्ण मधुनः पलमात्रकम् ।। भक्षयेत्मातरुत्थाय कोकिलाख्यानुपानतः॥ अभ्रक पारदै तानं गन्धकं मरिचानि च । ग्रहणी चिरजां हन्ति सशोथां पाण्डुकामलाम् । | समभागमिदं चूर्ण चाङ्गेरीरसमर्पितम् ॥ अग्निश्च कुरुते दीप्तं ज्वरं जीर्ण व्यपोहति ॥ मर्दिते हि रसे भूयो जयन्तीसिन्धुवारयोः । प्लीहानं यकृतं गुल्ममुदरश्च विशेषतः। भावनापि च कर्त्तव्या गुञ्जापरिमिता वटी ।। कासं श्वास प्रतिश्यायं हन्ति पुष्टिविवर्द्धनम ॥ ततोदकानुपानेन चतस्रस्तित्र एव वा। ____ लोहभस्म, ताम्रभस्म, अभ्रकभस्म, शुद्ध गन्धक | वहिमान्ये मदातव्या वट्यः 'पञ्चामृतास्तथा ॥ और शुद्ध पारद तथा सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, अभ्रक भस्म, शुद्ध पारद, ताम्रभस्म, शुद्ध बहेड़ा, आमला, नागरमोथा, बायबिडंग, चीता, गन्धक और काली मिर्च का चूर्ण समान-भाग लेकर पीपल, चिरायता, देवदारु, हल्दी, दारुहल्दा, प्रथम पारे और गन्धककी कज्जली बनावें तत्पश्चात् पोखरमूल, अजवायन, सफेद और काला जीरा, उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर सबको चांगेरी शटी (कचूर), धनिया और चवका कपड़छन महीन (चूका ), जयन्ती और संभालके रसकी १-१ चूर्ण १-१ भाग (५-५ तोले ) लेकर प्रथम पारे भावना देकर १-१ रत्ती की गोलियां बनावें। गन्धककी कज्जली बना और फिर उसमें अन्य इनमें से ३-४ गोली उष्णजल के साथ देने चाजाका चूणे मिला लें। से अग्निमांद्य रोग नष्ट होता है। तदनन्तर इस समस्त चूर्णसे आधा शुद्ध मण्डूरका चूर्ण लेकर उसमें उससे ४ गुना गोमूत्र (४३०२) पश्चास्यरसः और आठ गुना पुनर्नवाका काथ मिलाकर पकावें । ( कामलाप्रणुद्रसः ) जब अवलेहके समान गाढ़ा हो जाय तो अग्जिसे (र. चं.; र. र. । कामला.) नीचे उतारकर उसमें उपरोक्त चूर्ण मिला दें और तीक्ष्णमाक्षिककान्ताभ्रशुल्बसूतकतालकम् । उसके ठंडा होने पर १० तोले शहद मिलाकर | चिकने पात्र में भरकर रख दें। देवदालीरसैः पिष्टं वालुकायन्त्रसाधितम् ॥ इसे तालगखानेके काथके साथ सेवन करने अमृतोत्पलकहारकन्दद्राक्षासमन्वितम् । से शोथयुक्त पुरानी संग्रहणी, पाण्डु, कामला, जीर्ण मी | पिष्टं यष्टयम्भसा क्षौद्रसिताभ्यां कामलामणुद् ।। ज्वर, तिल्ली, यकृत् , गुल्म, विशेषतः उदररोग, तीक्ष्णलोह भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, कान्तखांसी, श्वास और प्रतिश्यायका नाश होता तथा लोहभस्म, अभ्रक भस्म, ताम्रभस्म, शुद्ध पारद अग्नि दीप्त होती और बल बढ़ता है। और शुद्ध हरताल समान भाग लेकर सबको एकत्र ( मात्रा-३ माशे ।) घोटकर १ दिन बिन्दालके रसमें खरल करें और For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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