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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (४२३१) पिप्पल्यादिगुटिका [ ४०० ] (४२३०) पिण्डीतगराञ्जनम् ( वं. से.; भा. प्र. । विष. ) पिण्डीतगरकं नेत्रे पुष्येणोत्पाटय योजितम् । चालयत्यत्र नो चित्रं पुरुषं दष्टमृतं खलु ॥ पुष्य नक्षत्र में पिण्डी तगरको उखाड़ यदि कोई रोगी सर्प दंशसे मृतक समान भी हो गया हो तो उसकी आंखों में इसका अंजन लगासे वह सचेत हो जाता है । भारत - भैषज्य रत्नाकरः । लें I ( यो. र.; वं. से.; यो. त; वृ. नि. र.; वृ. मा. 1 ने. रो. ) पिप्पली त्रिफला लाक्षा लोकं च' ससैन्धवम् भृङ्गराजरसे पिष्टं गुटिकाञ्जनमिष्यते || अर्मं सतिमिरं काचं कण्डूं शुक्रमथार्जुनम् । अजकां नेत्ररोगांश्च हन्यान्निरवशेषतः || पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, लाख, लोध और सेंधा नमकका समान भाग चूर्ण लेकर सबको भंगरेके रस में घोटकर गोलियां बनावें । इसे आंख में आंजनेसे अर्म, तिमिर, काच, कण्डू, शुक, अर्जुन और अजकाजात इत्यादि नेत्ररोग नष्ट होते हैं । (४२३२) पिप्पल्याद्यञ्जनम् (१) ( वं. से. । नेत्ररो. ) सङ्घप्य पिप्पलीचूर्ण सफेनं कांस्यभाजने । सक्षौद्रं सैन्धवोपेतमञ्जनं शुक्रनाशनम् ॥ पीपल, समुद्रफेन और सेंधा नमकका महीन १ लोहचूर्णमिति पाठान्तरम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ पकारादि चूर्ण तथा शहद १-१ भाग लेकर सब को एकत्र मिलाकर कांसीके पात्र में ( कांसीकी कटोरी से ) रगड़ें | इसे आंखमें आंजनेसे फूला नष्ट होता है । (४२३३) पिप्पल्याद्यञ्जनम् (२) (च. द. | नेत्ररो. ) पिप्पलीं सतगरोत्पलपत्रां वर्तमधुकां सहरिद्राम् । एतया सततमञ्जयितव्यं यः सुपर्णसममिच्छति चक्षुः ॥ पीपल, तगर, कमलपत्र, मुलैठी और हल्दीका समानभाग मिश्रित महीन चूर्ण लेकर सबको । पानी के साथ घोटकर बत्तियां बनालें । इन्हें नित्य प्रति आंख में आंजने से दृष्टि गरुड़ के समान तीक्ष्ण हो जाती है । (४२३४) पिप्पल्याद्यञ्जनम् (३) (ग. नि. | नेत्र. ) वैदेही श्वेतमरिचनागरं सैन्धवं समम् । मातुलुङ्गरसैः पिष्टमञ्जनं पिष्टकापहम् || पीपल, सहेजने के बीज, सांठ और सेंधानमका अत्यन्त महीन चूर्ण समान भाग लेकर सवको बिजौरेके रस में घोटकर अञ्जन बनावें । इसे आंख में आंजनेसे पिष्टक नामक नेत्ररोग नष्ट होता है । (४२३५) पिप्पल्याद्यञ्जनम् (४) (ग. नि. । ज्वरा. ) पिप्पलीलशुनराजिकावचाः पथ्यया सह जलेन चूर्णिताः । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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