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[३३६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
निसोत, बाराहीकन्द, अभ्रकभस्म, इलायची, । मन्दाग्निं च विजित्य पुष्टिमतुलां कुर्याच्च शुक्रपदो खस, बंगभस्म और लैग । प्रत्येकका चूर्ण १।- योगो गर्भकरः परो गदहरः स्त्रीणामसृग्दोष११ तोला।
जित् ।। सबको अच्छी तरह मिलाकर चिकने पात्रमें | सुपारीके ८ पल (४० तोले ) चूर्णको भरकर रक्खें ।
। ६ सेर दूधमें पकावें । जब खोवा (मावा) यह पाक वृष्य, नपुसकतानाशक, प्रमेह
हो जाय तो उसे ४० तोले घीमें भूनें और नाशक, वीर्यवर्द्धक तथा रक्तपित्त, प्रदर, क्षय,
फिर ५० पल ( ३ सेर १० तोले ) खांडकी हाथ पैरोंकी जलन, अम्लपित्त, शरीरको दाह, पाण्डु
चाशनीमें यह मावा तथा निम्न लिखित चीज़ांका और अग्निमांद्य में हितकर है।
चूर्ण मिलावें । ( मात्रा--१ तोला )
आमला और शतावर २०-२० तोले,
तथा नागकेसर, नागरमोथा, सफेदचन्दन, सोंठ, पूगपाकः ( रतिवल्लभः)
मिर्च, पीपल, आगला, चिरौंजी, बेरकी माँगी, रकारमें देखिये।
लज्जालु, दालचीनी, तेजपात, इलायची, दोनोंजी रे, (४०४१) पूगपांसुर्योगः ( पूगपाकः ) सिंघाड़ा, बंसलोचन, जावित्री, लौंग और धनिया। ( वृ. यो. त.। त. १०३; यो. र.; वै. र.। प्रत्येकका चूर्ण १।-११ तोला । सबको अच्छी प्रमेह.; यो. त. । त. ५१; वृ. नि. र.। | तरह मिलाकर चिकने पात्रमें भरकर रक्खें ।
प्रमेह; यो. चि. म. । अ. १) । इस नित्य प्रति प्रातःकाल सेवन करनेसे हेमाम्भोधरचन्दनं त्रिकटुकं धात्री प्रियालाकुह- प्रमेह, जीर्णज्वर, अम्लपित्त, गुदमार्ग आंख नाक लेजालस्त्रिमुगन्धिजीरकयुगं शृङ्गाटकं वंश
और मुंहसे रक्तस्राव होना और रक्तप्रदर आदि रोग
| नष्ट होते तथा बल, अग्नि और वीर्यकी वृद्धि जातीकोशलवडधान्यबहलाप्रत्येकमक्षोन्मिताः | होती है । इसके सेवनसे स्त्रियोंको गर्भप्राप्ति पुगस्याष्टपलं विचूर्ण्य च पयः प्रस्थत्रये संप- | होती है।
चेत॥ (मात्रा-६ माशे।) गोसपिः कुडवं सिताकतुलां धात्रीवरी द्वयालि (४०४२) पूगीपाक: मन्दाग्नौ विपचेद् भिषक् शुभदिने सुस्निग्ध (यो. त. । त. ५१)
भाण्डे क्षिपेत् । | श्रीखण्डं त्रिसुगन्धिकेसरकणाशुण्ठीवरीचाम्बुदं तं खादेत्तु यथाग्नि वासरमुखे मेहांश्च जीर्णज्वरं शृङ्गाटं जलज प्रियालबदरीधात्र्यब्जबीजं तुगा। पित्तं साम्लममृतिं च गुदजां वक्त्राक्षिना- द्राक्षा जीरकधान्यकं ससुमनः पुष्पं च जातीदलं
सासु च ॥ शुद्धारं दरदं पलार्द्धकमिदं सन्नारिकेलाप्रमत् ॥
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