________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुटिकापकरणम् ] हतीयो भागः।
[ ३१७ ] (४००३) पियालादिमोदक:
_ हल्दी, नीमके पत्ते, पीपल, काली मिर्च, (ग. नि. । बालरो.) नागरमोथा, बायबिडंग, सांठ, सेंधा नमक, चीता, पियालमज्जामधुकमधुलाजासितोपलैः।
कूठ, पाठा और हर्रका चूर्ण समान भाग लेकर अपस्तन्यस्य संयोज्य: मीणनो मोदकः शिशो। सबको बकरीके मूत्रमें पीसकर जंगली बेरके समान
चिरौंजी, मुलैठी, शहद, धानको खील और गोलियां बनाकर छायामें सुखा लें। मिश्री समान भाग लेकर शहदके अतिरिक्त अन्य टिप्पणी योग चिन्तामणिमें बाबची, पित्तसब चीजोंका चूर्ण करके उसे शहदमें मिलाकर | प.पड़ा, और बच । यह द्रव्य अधिक लिखे हैं गोलियां बनालें ।
तथा बकरीके मूत्रमें पीसते हुवे १-१ करके इनके सेवनसे बालक पुष्ट होते हैं।
|१०८ चमेलीके फूल डालनेके लिये लिखा है।
तथा गुटिका बनानेके लिए सबसे २ गुना गुड़ प्रकाशिका गुटिका
डालना भी लिखा है। (ग. नि. । नेत्ररो.) अञ्जनप्रकरणमें देखिये।
गुण इस प्रकार लिखे हैं-इनके सेवनसे प्रचेतानामगुटिका
वात व्याधि, हर्षवात, १८ प्रकारके गुल्म, २० (यो. चि. म. । अ. ३ )
प्रकार के प्रमेह, हृद्रोग, कुष्ठ, शूल, गलग्रह, श्वास, अजनप्रकरणमें देखिये।
ग्रहणी, पाण्ड, अग्निमांथ और अरुचिका नाश
होता है। प्रभाकरः प्रभावतीगुटिकाकरणम सिरसप्रकरणमें देखिये।
प्रभावतीवटी प्रभावतीगुटिका
रसप्रकरणमें देखिये। (ग. नि. । नेत्ररो.) (४००५) प्राणदागुटिका मजनप्रकरणमें देखिये।
( मै. र.; वं. से.; . मा.; च. द. । अर्श.; (४००४) प्रभावती वटिका
ग. नि. | गुटिका.) । (ग. नि. । परिशिष्ट गुटिका.) त्रिपलं शृङ्गवेरस्य चतुष्कं मरिचस्य च । हरिद्रा निम्बपत्राणि पिप्पल्यो मरिचानि च । पिप्पल्याः कुडवार्द्धश्च चव्यश्च पलमेव च ॥ भद्रमुस्ता विडतानि सप्तमं विश्वभेषजम् ॥ तालीसपत्रस्य पलं पलादै केसरस्य च । सैन्धवं चित्रकचैव कुष्ठं पाठा हरीतकी। वे पले पिप्पलीमूलाद कर्षश्च पत्रकात ।। एतानि समभागानि छागमूत्रेण पेपयेत् ॥ सूक्ष्मैला कर्षमेकश्च कर्षे त्वामृणालयोः। कोलास्थिका गुटी छायाशुष्का नाम्ना प्रभावती।। गुडात्पलानि त्रिंशच चूर्णमेकत्र कारयेत् ।।
For Private And Personal Use Only